'ऑपरेशन दुर्योधन' ने देश के संसदीय इतिहास में पहली बार संसद में सवाल पूछने के लिए पैसे लेने के अपराध का सबूत के साथ पर्दाफ़ाश किया था। भारत में खोजी पत्रकारिता के इतिहास में एक नया मानदंड स्थापित करने वाली टीवी रिपोर्ट के चलते विभिन्न पार्टियों के 11 सांसदों की लोकसभा और राज्यसभा की सदस्यता ख़त्म कर दी गयी थी। तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा पर लगे आरोप ने 18 साल पुरानी इस घटना की याद ताज़ा कर दी।

बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे द्वारा महुआ मोइत्रा के ख़िलाफ़ लगाया गया आरोप क्या 18 साल पहले 11 सांसदों के मामले की तरह पुष्ट है? जानिए दोनों मामलों में क्या अंतर है।
ऑपरेशन दुर्योधन एक अत्यंत जोखिम भरी मुहिम थी जिसे अनिरुद्ध बहल और उनकी टीम ने अंजाम तक पहुँचाया। दुनिया भर में कुछ सांसदों के द्वारा उद्योगपतियों से पैसे लेकर सवाल पूछने की शिकायतें आती रहती हैं लेकिन पचास के दशक में ब्रिटेन के एक मामले को छोड़ कर कभी भी पैसा लेने और सवाल पूछने के सबूत पेश नहीं किए गए। ऑपरेशन दुर्योधन की कमान कोबरा पोस्ट डाट काम के संपादक अनिरुद्ध बहल के हाथों में थी। प्रारंभिक काम करने के बाद अनिरुद्ध ने एक टीवी समाचार चैनल के साथ प्रसारण का क़रार किया। इस चैनल की ओर से मुझे इसके प्रोडक्शन और संपादकीय देख रेख की ज़िम्मेदारी दी गयी। इसके चलते ही मुझे पर्दे के पीछे की कई जानकारियां मिल गयीं जो अब तक सामने नहीं आयी हैं।
शैलेश कुमार न्यूज़ नेशन के सीईओ एवं प्रधान संपादक रह चुके हैं। उससे पहले उन्होंने देश के पहले चौबीस घंटा न्यूज़ चैनल - ज़ी न्यूज़ - के लॉन्च में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। टीवी टुडे में एग्ज़िक्युटिव प्रड्यूसर के तौर पर उन्होंने आजतक