बिहार में जाति सर्वेक्षण की रिपोर्ट आने के बाद इस मुद्दे पर चर्चा शुरू हो गयी है कि लोकसभा के अगले चुनाव (2024) में इसका फ़ायदा किसको होगा। एक तरफ़ विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' में शामिल दलों ने जातियों की संख्या के हिसाब से रणनीति बनाने की तैयारी शुरू कर दी है तो दूसरी तरफ़ बीजेपी गठबंधन अभी दुविधा में दिखाई दे रहा है। राज्य में इंडिया गठबंधन की कमान पूरी तरह से पिछड़े नेता नीतीश कुमार और लालू/तेजस्वी यादव के हाथ में है जबकि बीजेपी अभी भी सवर्ण नेतृत्व के इर्द गिर्द घूमती है।

बिहार में जाति सर्वेक्षण के आँकड़े जारी किए जाने के बाद क्या यह मुद्दा अब लोकसभा चुनाव में बेहद अहम हो जाएगा? इसका फ़ायदा किसको मिलेगा?
इस रिपोर्ट से आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव गद गद हैं। रिपोर्ट के मुताबिक़ जाति समूह के रूप में यादव सबसे ज़्यादा 14.26 प्रतिशत हैं। जबकि अति पिछड़ा और पिछड़ा वर्ग की कुल आबादी 63 प्रतिशत से ज़्यादा बतायी गयी है। लालू ने एक तरह से अपने अगले क़दम की घोषणा कर डाली। उन्होंने 'जिसकी जितनी संख्या, उसका उतना हिस्सा' वाला पुराना नारा तुरंत बुलंद कर दिया। ये नारा समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया ने साठ के दशक में दिया था लेकिन जाति सर्वेक्षण की रिपोर्ट आते ही लालू ने कहा कि सरकार को अब जातियों की आबादी के हिसाब से उनका अधिकार देने की योजना तुरंत बनाना चाहिए। उधर बीजेपी के नेता और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने इस रिपोर्ट को महज़ एक दिखावा बताया है।
शैलेश कुमार न्यूज़ नेशन के सीईओ एवं प्रधान संपादक रह चुके हैं। उससे पहले उन्होंने देश के पहले चौबीस घंटा न्यूज़ चैनल - ज़ी न्यूज़ - के लॉन्च में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। टीवी टुडे में एग्ज़िक्युटिव प्रड्यूसर के तौर पर उन्होंने आजतक