पुलवामा हमले में सीआरपीएफ़ के जवानों की शहादत के बाद जो वास्तविक भावनात्मक ज्वार देश में चढ़ा था, वह स्वाभाविक तौर पर धीरे-धीरे उतार पर है। हालाँकि, कुछ सत्ताधारी लोग अपनी छद्म वाहिनियों और उग्र समर्थकों के साथ युद्ध का माहौल बनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे। यहाँ तक कि इस हमले में भारतीय ख़ुफ़िया-तंत्र की विफलता पर कोई सवाल न उठाकर, कश्मीरियों को इसका ज़िम्मेदार माना जा रहा है और उन्हें देश के विभिन्न हिस्सों से मार-पीट कर खदेड़े जाने की घटनाएँ सामने आ रही हैं। पहले से ही अलगाववाद का शिकार बने कश्मीरी नौजवानों को चेतना के स्तर पर भारत में पूर्ण रूप से घुलने-मिलने की प्रक्रिया का हिस्सा बनने से बेदख़ल किया जा रहा है। उन्हें वापस कश्मीर जाकर मुख्यधारा में शामिल होने की आख़िरी उम्मीद छोड़ने और आख़िरकार आतंकवादी गिरोहों की गिरफ़्त में फँसकर हथियार उठाने के लिए मजबूर किया जा रहा है।
क्या हमें सिर्फ़ कश्मीर चाहिए, कश्मीरी नहीं?
- विचार
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- 23 Feb, 2019

पुलवामा हमले में भारतीय ख़ुफ़िया-तंत्र की विफलता पर कोई सवाल न उठाकर, कश्मीरियों को इसका ज़िम्मेदार क्यों माना जा रहा है? उन्हें मार-पीट कर खदेड़े जाने की घटनाएँ क्यों हो रही हैं?
विजयशंकर चतुर्वेदी कवि और वरिष्ठ पत्रकार हैं। उन्होंने कई मीडिया संस्थानों में काम किया है। वह फ़िलहाल स्वतंत्र रूप से पत्रकारिता करते हैं।