देश एक और लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुट गया है। अप्रैल-मई में सात चरणों में मतदान होगा और 23 मई तक नयी लोकसभा चुन ली जाएगी। इसके लिए दलों के सकारात्मक और नकारात्मक गठबंधन बन रहे हैं। चुनावी वायदे का मौसम आ गया है। दलों और मोर्चों के घोषणा-पत्रों की तैयारी हो रही है। कुछ अर्थशास्त्रियों ने एक 13-सूत्रीय सुझाव-पत्र प्रकाशित किया है। सहभागी लोकतंत्र के लिए वैकल्पिक राजनीति से जुड़े सक्रिय विशेषज्ञों ने 19 सूत्रीय दिशा-दस्तावेज़ सभी ग़ैर-सरकारी दलों के नेताओं को प्रेषित किया है। लेकिन भारतीय संविधान और लोकतंत्र के वर्तमान और भविष्य को लेकर सरोकारी नागरिकों की चिंताएँ हमारे राजनीतिक कर्णधारों की जानकारी में लाने के लिए एक खुली चिट्ठी भी ज़रूरी है। क्योंकि जानकार लोगों का मानना है कि हमारा देश उदारीकरण-निजीकरण-भूमंडलीकरण की दिशा में 1991-92 से चल रहे तीन दशकों के सफ़र के बाद एक विचित्र दोराहे पर आ गया है। अब या तो 2019 के चुनाव के ज़रिये हम लोकतंत्र की राह पर बढ़ने के लिए विविधता में एकता से पैदा लोकशक्ति से ऊर्जा लेंगे या राजभक्ति को देशभक्ति माननेवाली संगठित जमात के दबाव और धन-शक्ति की चमक-धमक के बूते राजकाज चलाने की साज़िश के शिकार हो जाएँगे। भारतीय मतदाता के लिए इस मौक़े पर मतदान का पवित्र नागरिक कर्तव्य पूरा करने की तैयारी में सरकार में शामिल दलों के गठबंधन और सरकार-विरोधी दलों के गठबंधनों से जुड़े दलों के नेताओं से कुछ दो-टूक बातें कहने की ज़िम्मेदारी पूरी करनी होगी।
क्या यह लोकसभा चुनाव भी पैसों की चमक-दमक के सहारे ही लड़ा जाएगा?
- विचार
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- 26 Mar, 2019

लोकसभा चुनाव से पहले देश के राजनीतिक कर्णधारों के नाम एक खुला पत्र। क्या इस चुनाव में हमारे नेता देश की जनता के विवेक के भरोसे चुनाव जीतना चाहते हैं या अधिक से अधिक धन-पशुओं और अपराधियों द्वारा पोषित लोकतंत्र-विरोधी आचरण वालों को टिकट देकर कालेधन की कालिख से भारतीय लोकसभा को बदरंग करने जा रहे हैं?