महान उर्दू कवि ग़ालिब का एक शेर है:
देश के लिये सबकुछ क़ुर्बान करने का जज़्बा कहाँ है?
- विचार
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- 24 Nov, 2020

गालिब से लेकर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ और मंसूर अल हज्जाज से लेकर वोल्टेयर तक सामाजिक-आर्थिक बदलाव के लिए क्रांति और सबकुछ न्यौछावर करने बात की है। आज जब हमारा देश भारी सामाजिक आर्थिक और राजनैतिक चुनौतियों का सामना कर रहा है, उत्पीड़ित जनता की दुर्दशा को दूर करने के लिए बड़ी संख्या में आशिक़ों (वास्तविक देशभक्तों) की घोर आवश्यकता है।
“इश्क ने ग़ालिब निकम्मा कर दियावरना हम भी आदमी थे काम के”
इसका क्या मतलब है?
इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए सबसे पहले यह बताना होगा कि उर्दू कविता में अक्सर एक बाहरी, शाब्दिक, सतही अर्थ और एक आंतरिक, रूपक, वास्तविक अर्थ होता है।
उदाहरण के लिए, फैज़ का शेर लीजिए:
“गुलों में रंग भरे बाद - ऐ - नौबहार चलेचले भी आओ की गुलशन का करोबार चले”
इस शेर का शाब्दिक सतही अर्थ है:
“फूलों के बीच नए वसंत की एक रंगीन हवा बह रही हैसाथ आओ, ताकि बगीचे का काम हो सके”