हिंदू आमतौर पर मसजिदों में नहीं जाते और मुसलमान आमतौर पर मंदिरों में नहीं जाते। लेकिन दोनों जिन जगहों पर जाते हैं उन्हें दरगाह कहते हैं। वास्तव में भारत में दरगाहों में आमतौर पर मुसलमानों की तुलना में अधिक हिंदू जाते हैं। इसीलिए मैं अक्सर दरगाहों पर जाता हूँ, क्योंकि वे सभी समुदायों के लोगों को एकजुट करते हैं।
आज के माहौल में हमें दरगाह क्यों जाना चाहिये?
- विचार
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- 27 Nov, 2020

दरगाहों पर जाकर केवल ऐसे सूफी संतों का सम्मान किया जाता है, उनकी पूजा नहीं की जाती है। मैं नास्तिक हूँ और किसी भी चीज़ की पूजा नहीं करता, लेकिन मैं अक्सर दरगाहों (जैसे अजमेर दरगाह, निज़ामुद्दीन चिश्ती दरगाह, आदि) में जाता हूँ उन सूफियों का सम्मान करने लिए जिन्होंने समाज में प्रेम, सहिष्णुता, भाईचारा और करुणा फैलायी।
दरगाह सूफी संतों की कब्रों पर बने समाधि हैं। वहाबियों जैसे कट्टरपंथी लोग दरगाहों को मूर्तिपूजा (बुत परस्ती) मानते हैं, क्योंकि वे कहते हैं कि दरगाहों में कब्रों की पूजा की जाती है, जबकि इसलाम में केवल अल्लाह की पूजा की अनुमति है। इसीलिए सऊदी अरब, जो वहाबियों द्वारा शासित, में किसी भी दरगाह की अनुमति नहीं हैI पाकिस्तान में, जबकि बड़ी संख्या में मुसलमान दरगाहों (जैसे बाबा फ़रीद की दरगाह) में जाते हैं, और कई बार कट्टर उग्रवादी दरगाहों पर बमबारी करते हैं।