हवा का रुख़ देखकर लगता है कि लोगों की बेचैनी बढ़ रही है, वे पहले के मुक़ाबले ज़्यादा नाराज़ होने लगे हैं और अकेलेपन से घबराकर बाहर कहीं टूट पड़ने के लिए छटपटा रहे हैं। मनोवैज्ञानिक आगाह भी कर चुके हैं कि ऐसी स्थितियों में ‘डिप्रेशन’ के मामलों में भी काफ़ी वृद्धि हो जाती है। इनमें घरों में बंद लोगों के साथ-साथ खुली सड़कों पर अपने को और ज़्यादा अकेला और असहाय महसूस करने वाले हज़ारों-लाखों बेरोज़गार और मज़दूर भी शामिल किए जा सकते हैं।