हवा का रुख़ देखकर लगता है कि लोगों की बेचैनी बढ़ रही है, वे पहले के मुक़ाबले ज़्यादा नाराज़ होने लगे हैं और अकेलेपन से घबराकर बाहर कहीं टूट पड़ने के लिए छटपटा रहे हैं। मनोवैज्ञानिक आगाह भी कर चुके हैं कि ऐसी स्थितियों में ‘डिप्रेशन’ के मामलों में भी काफ़ी वृद्धि हो जाती है। इनमें घरों में बंद लोगों के साथ-साथ खुली सड़कों पर अपने को और ज़्यादा अकेला और असहाय महसूस करने वाले हज़ारों-लाखों बेरोज़गार और मज़दूर भी शामिल किए जा सकते हैं।
लॉकडाउन: लोगों में बेचैनी बढ़ती जा रही है...
- विचार
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- 5 Apr, 2020

कोरोना वायरस को लेकर प्रधानमंत्री की मुख्यमंत्रियों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग हुई। इस बात का पता चलना शेष है कि कम से कम उन मुख्यमंत्रियों की ही ओर से जो सोनिया गाँधी का ‘ही कहा’ या ‘कहा भी’ मानते हैं, केंद्र को कठघरे में खड़ा करने या विचलित करने वाला ऐसा एक भी सवाल प्रधानमंत्री या उनके साथ बैठे लोगों से पूछा गया हो जिसका कि जवाब उनके राज्य की जनता माँग रही है।
हमारे लिए ऐसा और इतना लम्बा एकांतवास पहला अनुभव है, कम से कम उस पीढ़ी के लिए जो पिछले बीस वर्षों में बड़ी हुई है। पिछले बीस वर्षों में भी देश को कोई ऐसा युद्ध नहीं लड़ना पड़ा है जिसमें किसी ज्ञात या अज्ञात शत्रु से युद्ध के लिए अपने को घरों में क़ैद करना पड़ा हो। चीन के साथ हुए युद्ध की हमें तो याद है पर उसे भी हुए अब साठ साल होने को आए।