भारत में लाल क़िले से प्रधानमंत्री मोदी ने आज दसवीं बार राष्ट्रीय ध्वज फहराकर डॉ. मन मोहन सिंह की बराबरी तो कर ली लेकिन देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की बराबरी करने के लिए मोदी को एक और जन्म की ज़रूरत पड़ सकती है। मोदी ने आज अपने राष्ट्रीय उद्बोधन में 'प्रिय देशवासियो' न कह कर 'प्यारे परिवारजनों' कहा है। ये कहकर वे अपने सबसे कट्टर राजनीतिक विरोधी नेहरू-गांधी परिवार को निशाने पर रखे रहे। उनके सिर से नेहरू-गांधी का भूत आखिर नहीं उतरा तो नहीं उतरा। मोदी तीसरा टर्म हासिल करने के लिए 'पंच प्राण' का नारा लेकर देश के सामने प्रकट हुए हैं।

स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का देश के नाम संबोधन कैसा था? क्या उन्होंने कोई आगे की दृष्टि पेश की या फिर विपक्ष को कोसने में भी लगे रहे?
प्रधानमंत्री का भाषण देश के लिए उत्सुकता का विषय था। प्रधानमंत्री का भाषण सीधे-सीधे चुनावी भाषण था। उनके उद्बोधन में सिर्फ इतना अंतर था कि उनका मंच राष्ट्र का मंच था और उनके मंच पर दोरंगे के स्थान पर तिरंगा था। प्रधानमंत्री ने इस महत्वपूर्ण अवसर पर न कोई भावुकता दिखाई और न एक पल के लिए वे भटके। उन्होंने अपने भाषण में भाषा के गाम्भीर्य का हमेशा की तरह अभाव रखा। उन्होंने नए वैज्ञानिकों के लिए 'गर्भाधान' जैसे शब्द का इस्तेमाल किया। उनके भाषण में पुरानी नाटकीयता बरकरार रही। वे कविताएं भी ऐसे पढ़ रहे थे जैसे कि कोई मंजन बेचने के लिए विज्ञापन कर रहा हो।अच्छी बात ये रही कि उन्होंने मणिपुर का जिक्र किया लेकिन हरियाणा का जिक्र नहीं किया।