12 मई की रात आठ बजे प्रधानमंत्री मोदी के संबोधन में इतिहास की कोख से निकले अनेक अनुत्तरित सवालों के जवाब मिलने की आस दिखाई देती है। तीसरे चरण के लॉकडाउन की घोषणा के समय ही ऐसे संकेत मिलने लगे थे कि सरकार अब वैश्विक महामारी के ख़िलाफ़ लड़ाई को सभी मोर्चों पर लड़ने का विचार कर रही है। प्रधानमंत्री के हाल के संबोधन को इस रूप में देखा जाना चाहिए कि भारत ने इस लड़ाई को ‘कोविड के साथ भी और कोविड के बाद भी’, की नीति पर लड़ने का मन बना लिया है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री मोदी ने लगभग 20 लाख करोड़ के पैकेज की घोषणा की। निस्संदेह यह एक बड़ी आर्थिक घोषणा है। इतने बड़े पैकेज की आस शायद किसी को नहीं थी। इस पैकेज से भारत के सामाजिक-आर्थिक मॉडल में किस तरह के बदलाव भविष्य में दिखेंगे, इसको समझने के लिए कुछ बुनियादी बातों पर ग़ौर करना ज़रूरी है।
मोदी के संबोधन में भावी भारत के बदलाव की मौलिक ‘अर्थ दृष्टि’
- विचार
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- 14 May, 2020

12 मई की रात आठ बजे प्रधानमंत्री मोदी के संबोधन में इतिहास की कोख से निकले अनेक अनुत्तरित सवालों के जवाब मिलने की आस दिखाई देती है।
प्रधानमंत्री मोदी के संबोधन से मुख्यतया दो पक्ष उभरते हैं- वैचारिक निष्ठा तथा व्यावहारिक दृष्टिकोण। ‘आत्मनिर्भर भारत’ की बात करना उस राजनीतिक दल की मूल वैचारिक सोच का हिस्सा है, जिस दल से प्रधानमंत्री मोदी आते हैं। वहीं ‘आत्मनिर्भरता’ के लक्ष्यों को अतीतजीवी जड़ता की बजाय युगानुकूल चेतना के साथ समझना उनकी व्यावहारिक दृष्टि को दिखाता है।
लेखक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फ़ाउंडेशन में सीनियर रिसर्च फेलो तथा ब्लूम्सबरी से प्रकाशित गृह मंत्री अमित शाह की राजनीतिक जीवनी ‘अमित शाह एंड द मार्च ऑफ़ बीजेपी’ के लेखक हैं।