पटेल अंदर से भागते हुए आए और कार में बैठ गए। मणिबेन भी साथ में बैठीं। दोनों बिड़ला हाउस पहुंचे। पटेल गांधी के पैर के पास बैठ गए। कुछ मिनट बाद नेहरू भी पहुँच गए। वह घुटने के बल बैठ गए और पटेल की गोद में सिर रखकर फूट-फूटकर रोने लगे।
पटेल ने दिखाई सख़्ती
पटेल के सहयोगियों व अधिकारियों से कमरा और बिड़ला हाउस का परिसर खचाखच भर गया। पटेल लौह पुरुष की भूमिका में आ गए। उन्होंने जनरल रॉय बुचर और पुलिस अधिकारियों को आदेश दिया देश में सुरक्षा के कड़े कदम उठाए जाएं और ‘यह कहने में कोई संकोच न किया जाए कि गाँधी का हत्यारा हिंदू था।’पटेल-नेहरू मतभेद
कश्मीर के मामले को देखने के लिए नेहरू ने गोपालस्वामी आयंगर को कैबिनेट में शामिल कर लिया था, जो कश्मीर के दीवान थे। इसके बारे में पटेल को सूचना नहीं थी।आयंगर के फ़ैसलों व उनकी नियुक्ति को लेकर ही पटेल व नेहरू के बीच मतभेद थे और पटेल ने 23 दिसंबर 1947 को नेहरू को पत्र लिखकर इस्तीफ़े की पेशकश कर दी थी।
इस्तीफ़े की माँग तेज़
गाँधी की हत्या के बाद समाजवादियों ने पटेल के इस्तीफ़े की माँग तेज़ कर दी थी। माँग करने वालों में नेहरू की ख़ास मृदुला अहम थीं और जय प्रकाश नारायण नेहरू के साथ ही ठहरे हुए थे।“
‘बापू की मौत के साथ सबकुछ बदल गया है। अब हमें अलग और ज्यादा कठिनाइयों से भरी दुनिया का सामना करना है। मैं आपके और अपने बारे में अफ़वाहों से बहुत बहुत तनाव में हूँ क्योंकि हमारे बीच जितने मतभेद हैं, उससे कई गुना बढ़ा चढ़ाकर कहा जा रहा है। हमें इसे ख़त्म करना होगा।’
पटेल को लिखी नेहरू की चिट्ठी का अंश
पटेल का भावुक जवाब
गाँधी की मृत्यु, गृह मंत्रालय की विफलता और सुरक्षा में हुई चूक के बीच पटेल के इस्तीफ़े की माँग के बीच नेहरू भावुक थे। पटेल भी हताश थे और मंत्रिमंडल में बने नहीं रहना चाहते थे। नेहरू ने पत्र में लिखा :‘मुझे लगता है कि बापू की मौत के बाद पैदा हुए संकट के बाद यह मेरा कर्तव्य है और यह कहने का मुझे अधिकार है कि आपका भी यह दायित्व है कि हम इस मुसीबत का सामना दोस्त और सहकर्मी बनकर करें। यह दिखावे में नहीं बल्कि एक दूसरे पर पूरे विश्वास के साथ ऐसा करना होगा।’
दूर हुए गिले-शिकवे
नेहरू के इस भावुक पत्र के जवाब में पटेल ने भी उसी तरह भावुक प्रतिक्रिया दी। पटेल ने 5 फरवरी 1948 को लिखा, ‘मैं हृदय से आपकी भावनाओं के साथ हूं। हम दोनों जिंदगी भर कॉमरेड रहे और एक ही मकसद के लिए लड़े। हमारी शीर्ष और साझा रुचि देशहित को लेकर है और मतभेद रहते हुए भी हमारे बीच प्यार व लगाव हमें मजबूती से बांधे हुए हैं। मेरा सौभाग्य है कि बापू की मृत्यु के आधे घंटे पहले उनसे मेरी बात हुई और उनकी भी यही इच्छा थी कि हम मिलकर काम करें। मैं अपनी तरफ से आपको आश्वस्त करता हूं कि अपने दायित्व का निर्वहन पूरी निष्ठा के साथ करूंगा।’वफ़ादारी का भरोसा
यह पत्र लिखने के एक दिन पहले ही पटेल ने संविधान सभा में कांग्रेस पार्टी को संबोधित करते हुए सार्वजनिक रूप से नेहरू के साथ एकजुटता दिखाते हुए पूरी वफादारी साथ खड़े रहने की बात कही थी। उन्होंने कांग्रेस पार्टी को संबोधित करते हुए कहा :“
‘मैं सभी राष्ट्रीय मसलों पर प्रधानमंत्री के साथ हूँ। एक चौथाई शताब्दी तक हमने अपने नेता के चरणों के पास साथ बैठकर काम किया है और भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी है। अब इसके बारे में सोचा भी नहीं जा सकता कि जब महात्मा नहीं रहे तो हम आपस में झगड़ा करें।’
वल्लभ भाई पटेल, भारत के पहले गृह मंत्री
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