अब जबकि अगले लोकसभा चुनाव की घोषणा को पचास दिन भी नहीं रह गए हैं, देश के सियासी मिजाज को लेकर अटकलों का दौर जारी है। बावजूद इसके कि प्रधानमंत्री मोदी अपने अगले तीसरे कार्यकाल को महज औपचारिकता बताकर अपनी नई सरकार के सौ दिन के एजेंडे पर काम कर रहे हैं, विपक्ष की संभावनाओं को लेकर विश्लेषण और आकलन जारी है। इस क्रम में ‘सत्य हिन्दी’ में प्रकाशित वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग का ताजा लेख, "हालात आपातकाल के हैं, तो नतीजे भी 1977 जैसे मिलने चाहिए!" से कुछ मौजू सवाल उठते हैं, जिन पर गौर करना दिलचस्प होगा।
1977 जैसे नतीजे के लिए मौजूदा विपक्ष क्या करे?
- विचार
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- 28 Feb, 2024

क्या भारत की मौजूदा राजनीतिक स्थिति और माहौल की तुलना 1977 से की जा सकती है? क्या 47 साल पहले के विपक्षी गठबंधन जैसी स्थिति की कल्पना की जा सकती है?
श्रवण गर्ग ने अपने लेख का समापन जिस एक पंक्ति से किया है, दरअसल वहां से एक बड़ा सूत्र मिलता है। उन्होंने लिखा है, "जनता की उम्मीदें इस समय यही हैं कि परिस्थितयां अगर 1975 के आपातकाल के तरह की हैं, तो नतीजे भी 1977 जैसे प्राप्त होने चाहिए!" इस पर वाकई गौर करने की जरूरत है। जाहिर है, इसके लिए पांच दशक (करीब 49 वर्ष) पीछे मुड़कर देखने की ज़रूरत है।