1984 के सिख विरोधी दंगों में भीड़ ने बेगुनाहों का क़त्ल किया। उस वक़्त अल्पसंख्यक सिख समुदाय किस पीड़ा से गुज़रा होगा, इसका दूसरों के लिए अहसास करना भी मुश्किल है।
1984: सिख विरोधी दंगों के पीड़ितों को कब मिलेगा इंसाफ़?
- विचार
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- 1 Nov, 2019

सिख कौम नवंबर 1984 की पीड़ा को दीपावली और गुरु नानक साहब के प्रकाश उत्सव के बीच हर साल याद करने को मजबूर है। हर साल जब गुरु नानक साहब का प्रकाश पर्व आने वाला होता है तो सिख कौम को 1984 के इस दुख और पीड़ा से होकर गुज़रना पड़ता है।
बेगुनाह सिखों का क़त्ल करने वाली दंगाई भीड़ को हर क़त्ल के हिसाब से ईनाम देने की घोषणा कांग्रेस नेता सज्जन कुमार खुलेआम कर रहा था। और जब वह इस सांप्रदायिकता की आग पर रोटियाँ सेंक कर संसद पहुँचा तब मेजें थपथपाई जा रही थीं। नवंबर 1984 में तीन दिन अपने ही देश की राजधानी में, अपनी ही पुलिस और फ़ौज की निगरानी में, अपने ही देश के मासूम नागरिकों की नस्लकुशी कर फ़िरकापरस्ती की आग पर चुनावी रोटियाँ सेंकने को उतावले राजीव गाँधी जब जल्द चुनाव करवा रहे थे तब किसी चुनाव आयोग को चुनाव लायक माहौल बनने का और चुनाव नहीं करवाने की नहीं सूझी।
जरनैल सिंह अब आम आदमी पार्टी से जुड़े हैं। विधायक रह चुके हैं। 2009 में उन्होने 84 नरसंहार के विरोध में गृह मंत्री पी. चिंदंबरम पर जूता उछाला था। दंगों पर एक किताब भी लिखी है। वे दैनिक जागरण में रिपोर्टर रह चुके हैं।