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पीएम मोदी की ‘हेट’ स्पीच कैसे सुन रहे होंगे नीतीश?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा राजस्थान के बाँसवाड़ा में मुसलमान के बारे में दी गई ‘हेट’ स्पीच पर कांग्रेस और दूसरी पार्टियों ने तो आपत्ति जताई है लेकिन सांप्रदायिकता से समझौता न करने के दावे करने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की राय क्या है, यह पता नहीं चल पाया है।

नरेंद्र मोदी ने न सिर्फ पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के आधे अधूरे बयान को उद्धृत करते हुए मुसलमानों के बारे में ग़लतबयानी की बल्कि उन्हें अधिक बच्चा पैदा करने वाले और घुसपैठिया भी घोषित कर दिया। पीएम मोदी का बयान कितना ज़हरीला है उसे पढ़िए: “पहले जब उनकी सरकार थी तब उन्होंने कहा था कि देश की संपत्ति पर पहला अधिकार मुसलमानों का है, इसका मतलब ये संपत्ति इकट्ठा करके किसको बांटेंगे- जिनके ज़्यादा बच्चे हैं उनको बांटेंगे, घुसपैठियों को बांटेंगे। क्या आपकी मेहनत का पैसा घुसपैठियों को दिया जाएगा? आपको मंज़ूर है ये?"

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उनकी सरकार से मोदी का मतलब पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की कांग्रेस सरकार से है। कई फैक्ट चेकरों ने यह बात साबित कर दी है कि मनमोहन सिंह ने अन्य पिछड़े वर्गों के साथ मुसलमानों का भी नाम लिया था लेकिन श्री मोदी ने कुटिलता से उनके बयान के सिर्फ उसे हिस्से का जिक्र किया जिसमें मुसलमानों के बारे में बात कही गई थी।

नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में जिस तरह पहले मुसलमानों का जिक्र किया और अगले ही वाक्य में उन्हें ज्यादा बच्चा पैदा करने वाले और घुसपैठियों से जोड़ा वह मामला साफ तौर पर हेट स्पीच यानी नफरती भाषण का है।

कुछ ही महीने पहले की बात है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भारतीय जनता पार्टी पर सांप्रदायिकता का आरोप लगाते थे लेकिन अब उसी भारतीय जनता पार्टी के नरेंद्र मोदी के साथ मंच साझा कर रहे हैं जो मुसलमानों को खुलेआम नीचा दिखा रहे हैं और उनके खिलाफ जहरीले बयान दे रहे हैं। 
नीतीश कुमार आजकल अपनी चुनावी सभाओं में मुसलमानों से अपील कर रहे हैं कि वह एनडीए के उम्मीदवारों को वोट दें और यह भी याद दिला रहे हैं कि कैसे उनके शासनकाल में झगड़ा-लड़ाई बंद हुआ।

वह और भी कई बातों की याद दिला रहे हैं जो उनके अनुसार उन्होंने मुसलमानों के हित में किया। लेकिन क्या नीतीश कुमार प्रधानमंत्री के इस ताजा बयान से असहज महसूस नहीं कर रहे होंगे? या उन्होंने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए इन सब बातों को नजरअंदाज करना ही अपनी नीति बना ली है?

बहुत से लोगों का कहना है कि लोकसभा चुनाव के पहले चरण में भारतीय जनता पार्टी और एनडीए की हालत खराब देखकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी माहौल को गर्माना चाह रहे थे और इसमें उन्हें कामयाबी मिली है। तो क्या मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी उनकी माहौल को गर्माने की इस नीति और बयानों से सहमत हैं? 

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हैरत तो यह है कि कुछ ही दिनों पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूर्णिया के चुनावी दौरे पर आए थे तब भी उन्होंने सीमांचल में घुसपैठ का आरोप लगाया था। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पूर्णिया की उस सभा में नहीं थे जिसमें नरेंद्र मोदी ने घुसपैठ का आरोप लगाया था लेकिन वह इससे पहले कई बार इस आरोप का जवाब दे चुके हैं और साफ तौर पर घुसपैठ की बात से इनकार करते हैं।

नरेंद्र मोदी ने पूर्णिया में जिस तरह घुसपैठ का आरोप लगाया क्या वह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के 18 साल के शासनकाल पर सवाल नहीं है?

दिलचस्प बात यह है कि इस सीमांचल की कटिहार सीट पर जब केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह भाषण देने आए तो उन्होंने ना तो घुसपैठ की चर्चा की और ना ही सीएए-एनआरसी की। क्या ऐसा माना जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के घुसपैठ वाले आरोप के बाद नीतीश कुमार ने भारतीय जनता पार्टी को यह संदेश भिजवाया हो कि ऐसे नहीं चलेगा, जिसका असर अमित शाह के भाषण पर पड़ा? 

वैसे नरेंद्र मोदी अभी बिहार के कई दौरे करेंगे तो यह देखना दिलचस्प होगा कि वह यहां अपने घुसपैठ के आरोप और उन जहरीले बयानों को दोहराते हैं या उनसे बचने की कोशिश करते हैं। 

ध्यान रहे कि सीमांचल की चार सीटों- किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया और अररिया में से तीन सीटों पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड के उम्मीदवार एनडीए के उम्मीदवार हैं।

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ऐसे में जदयू के उन उम्मीदवारों से भी यह सवाल किया जा रहा है कि क्या वह प्रधानमंत्री के घुसपैठ वाले आरोप से सहमत हैं? उनसे पूछा जा रहा है कि प्रधानमंत्री ने सच आरोप लगाया या उन्होंने झूठ कहा? वह पूछ रहे हैं कि अगर प्रधानमंत्री ने झूठ बोला तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इसका खंडन क्यों नहीं करते?

नीतीश कुमार के करीबी माने जाने वाले जदयू के एमएलसी ख़ालिद अनवर से जब यह सवाल पूछा गया तो उन्होंने इस पर बयान देने से पल्ला झाड़ लिया। ख़ालिद अनवर ने इतना ज़रूर कहा कि जदयू यह मानता है कि बिहार में कोई घुसपैठ नहीं है और प्रधानमंत्री के आरोप के बारे में उनका कहना था कि यह भारतीय जनता पार्टी का विचार है।

सवाल यह है कि अगर भारतीय जनता पार्टी के इस विचार से जदयू असहमत है तो वह यह असहमति मंच पर क्यों नहीं व्यक्त करता? कई लोग यह सवाल भी करते हैं कि कहीं ऐसा तो नहीं कि आज जदयू घुसपैठ के आरोप से इनकार कर रहा है लेकिन बाद में वह इस पर भी उसी तरह समझौता कर ले जैसे अन्य मामलों में उसने भारतीय जनता पार्टी से समझौता कर लिया। 

जनता दल (यूनाइटेड) सीएए, ट्रिपल तलाक और अनुच्छेद 370 जैसे मामलों में भारतीय जनता पार्टी से अलग राय रखता था लेकिन जब लोकसभा में वोटिंग की बारी आई तो उसने भारतीय जनता पार्टी की राह पकड़ ली।

घुसपैठ के अलावा मुसलमानों की जनसंख्या भी एक ऐसा मामला है जिस पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की स्पष्ट राय थी कि यह आरोप सही नहीं है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आज से कुछ महीने पहले आँकड़े देकर यह बताते थे कि कैसी बिहार में जन्म दर शिक्षा के प्रसार से कम हुई है और इसके लिए कोई कानून बनाने की जरूरत नहीं है। 

अब नरेंद्र मोदी ने मुसलमानों को ‘ज़्यादा बच्चा पैदा करने वाले’ कहकर भारतीय समाज में जो जहर फैलाया है उसके बारे में नीतीश कुमार की क्या राय होगी? क्या मुसलमान अपने बारे में ऐसे जहरीले बयान सुनकर भी नीतीश कुमार के कहने पर एनडीए को वोट देंगे? नरेंद्र मोदी का बयान सिर्फ भारत के प्रधानमंत्री की छवि के लिए नहीं बल्कि नीतीश कुमार के लिए भी एक गंभीर प्रश्न है। सवाल यह है कि आखिर नीतीश कुमार ऐसे बयानों को कैसे सुन पाते हैं और बर्दाश्त कर लेते हैं?

इस बयान पर नीतीश कुमार की चुप्पी उनकी सेक्यूलर छवि पर एक और गहरा दाग बन गया है।

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समी अहमद
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