साल 2018 में सरकार ने आईआईटी दिल्ली और मुंबई, आईआईएससी और बिट्स-पिलानी जैसे संस्थानों के साथ रिलायंस फ़ाउंडेशन की एक कागज़ पर आकार ली हुई संस्था जियो यूनिवर्सिटी को ‘इंस्टिट्यूशन ऑफ़ एमिनेंस’ में जगह दी तो देश भर में चर्चाओं का दौर शुरू हो गया था। लेकिन दो साल से ज़्यादा का समय बीत गया जियो इंस्टिट्यूट अब तक बना नहीं। वह अभी भी प्रस्तावित है। वैसे रिलायंस फ़ाउंडेशन कहता है कि वह टॉप 500 ग्लोबल यूनिवर्सिटी से फ़ैकल्टी लाएगा, शिक्षकों के लिए भी आवासीय यूनिवर्सिटी होगी, असली चुनौतियों का समाधान ढूँढने के लिए इंटर-डिसिप्लिनरी रिसर्च सेंटर बनाएगा और बाक़ी सुविधाओं के अलावा 9,500 करोड़ रुपये इस इंस्टिट्यूट पर ख़र्च करेगा। उसके अगले साल शिक्षा बजट में, स्टडी इन इंडिया, नई शिक्षा नीति और इस साल के बजट में राष्ट्रीय शिक्षा आयोग, शिक्षा में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश जैसी भारी-भरकम बातें कही गयी हैं। लेकिन साल दर साल के शिक्षा बजट और वित्त मंत्री के भाषण सुनें या पढ़ें तो ऐसे सवाल उठते हैं कि आख़िर ये बदलाव कब आयेंगे?

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट पेश किया, लेकिन शिक्षा के लिए उन्होंने क्या दिया? पिछले बजट में की गई घोषणाएँ कब पूरी होंगी और आख़िर ये बदलाव कब आयेंगे?