प्लेग की महामारी 1896 में जब मुंबई पहुंची तो शुरुआत में इसका कारण हांगकांग से आए मालवाहक जहाज को माना गया। यह मानने के बहुत से कारण थे। एक तो शुरू में इस महामारी का प्रकोप बंदरगाह के पास मांडवी इलाक़े में ही सबसे पहले दिखाई दिया था।
मांडवी इलाक़े में ही गोदामों में बड़ी संख्या में मरे हुए चूहे पाए गए थे लेकिन तब इसकी ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया। बाद में जब एक के बाद एक लोगों में प्लेग के लक्षण दिखने लगे और उनकी मौत होने लगी तो महामारी के फैलने से इनकार करना संभव नहीं रहा।
लेकिन सरकार किसी भी तरह से यह स्वीकार नहीं करना चाहती थी कि प्लेग समुद्री रास्ते से आया है। चीन और हांगकांग में प्लेग 1894 से ही फैलना शुरू हो गया था। वहां जिस समय यह चरम पर था, भारत के सभी बड़े बंदरगाहों पर जहाजों के लिए लंगर डालने से पहले 14 दिन का क्वारंटीन ज़रूरी कर दिया गया था। लेकिन बाद में जब प्लेग की ख़बरें आनी थोड़ी कम हुईं तो इस फ़ैसले को वापस ले लिया गया।
1896 में जब हांगकांग में प्लेग की दूसरी लहर आई तो भारत में ज्यादा सतर्कता नहीं बरती गई। जाहिर है कि समुद्री रास्ते वाली बात स्वीकार करने से उंगली सरकार पर ही उठती। दूसरा, सरकार को यह भी लगता था कि इसका असर विदेश व्यापार पर पड़ सकता है। इसलिए प्लेग की नई थ्योरी तलाशी जाने लगी।
तभी मुंबई के एक थाने के लाॅकअप में ऐसी घटना हुई जिसने सरकार को महामारी का नया फसाना गढ़ने का मौका दे दिया। एक अंग्रेज पुलिस अफ़सर ने शहर की सड़कों पर घूम रहे नागा साधु को सिर्फ इसलिए पकड़ कर हवालात भेज दिया क्योंकि वह निर्वस्त्र था और किसी भी तरह से कपड़े पहनने को तैयार नहीं था।
दो-तीन दिन में इस नागा साधु का निधन हुआ तो पता लगा कि उसे प्लेग था। आगे जांच में ऐसे कई और साधु सामने आये जो मालबार हिल के वल्केशवर मंदिर में डेरा जमाए हुए थे। वहां भी कुछ लोगों में प्लेग के लक्षण पाए गए।
जिस समय मुंबई में प्लेग फैलना शुरू हुआ, उसी समय नासिक में कुंभ का आयोजन चल रहा था। नासिक भी बांबे प्रेसीडेंसी का ही हिस्सा था। आमतौर पर साधु जब इतनी दूर आते हैं तो वे आस-पास के बाकी तीर्थ स्थलों में भी ज़रूर जाते हैं। पूछताछ में पता चला कि इनमें से ज्यादातर साधु हिमालय के कुमाऊं और गढ़वाल क्षेत्र से आए हैं। इसके साथ ही यह भी बताया गया कि कुमाऊं और गढ़वाल से प्लेग की ख़बरें पहले भी आती रही हैं।
इस बीच यह तथ्य भी कहीं से ढूंढ निकाला गया कि मुंबई में प्लेग से मरने वालों में जिसका सबसे पहले नाम रिकाॅर्ड में आया वे लुक्मीबाई नामक महिला थीं। बताया गया कि लुक्मीबाई चंद रोज पहले ही नासिक से आई थीं।
सरकार को प्लेग के फैलने के लिए एक नई थ्योरी मिल गई थी और इसका प्रचार भी शुरू हो गया। कई दिनों तक इस पर चर्चाएं भी हुईं।
ये अलग बात है कि यह थ्योरी ज्यादा चल नहीं सकी। एक तो मुंबई में तब तक प्लेग फैल चुका था और नासिक में इसके बहुत ज्यादा मामले देखने में नहीं आए थे। दूसरे वे साधु हजारों किलोमीटर से पैदल चलकर वहां पहुँचे थे। कई दिनों की यात्रा के दौरान वे रास्ते में न जाने कितनी जगह रुके होंगे। लेकिन इस पूरे रास्ते में प्लेग कहीं भी क्यों नहीं फैला? सिर्फ मुंबई में ही क्यों फैला? इन सवालों के जवाब नहीं दिए जा सके, इसलिए यह एंगल भी गिर गया।
अपनी राय बतायें