'वन प्वाइंट अजेंडा'
उत्तर प्रदेश में बीजेपी जब-जब सत्ता में आई है, आगरा को लेकर उसका 'वन प्वाइंट एजेंडा' यहाँ के ऐतिहासिक संसार में मुगलों के महत्व को कम करके दर्शाना रहा है। इत्तेफ़ाक़ से पिछली सरकारें न तो लम्बे समय रह पाई और न स्वतंत्र दल होने के चलते उन्हें यह अवसर मिल सका। पिछले दौर में आगरा के डिग्री कॉलेजों के इतिहास के कुछ छुटभैया अध्यापकों को बटोर कर आगरा के इतिहास में कुछ नए 'तथ्यान्वेषण' रोपने की कोशिश की गई थी, हालांकि ऐसा हो नहीं सका।जल्द पूरा हो जाएगा निर्माण कार्य
'मुग़ल म्यूज़ियम' की आधारशिला तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने जनवरी 2016 में रखी थी। 6 एकड़ भूमि में फैला बहुमंज़िला परिसर और महत्वाकांक्षी योजनाओं वाला यह म्यूज़ियम तब से तेज़ी से निर्माणाधीन है और उम्मीद है कि पूरा हो जाने के बाद यह पयटकों के लिए आकर्षण का बहुत बड़ा केंद्र साबित होगा। आने वाले पर्यटकों के लिए यह सम्पूर्ण मुग़ल काल की झांकी प्रस्तुत करेगा।क्या कहना है इतिहासकारों का?
मध्यकाल के सुप्रसिद्ध इतिहासकार प्रो० इरफ़ान हबीब कहते हैं ‘देश की नई या पुरानी इमारतों को सांप्रदायिक बनाकर लोगों के वहां जाने से रोका नहीं जा सकता। लोग वहां जाएंगे भी और उन्हें जानना भी चाहेंगे। आप एक स्रोत को कुछ वक़्त के लिए रोकेंगे तो दूसरे बहुत सारे स्रोत खुले हुए हैं। किस किस को रोकेंगे? उन्होंने सत्य हिन्दी से कहा,“
‘मुग़ल हमारे हीरो नहीं थे, आपके कह देने भर से वे विलेन नहीं हो जाते। उनका जो भी अच्छा या बुरा रोल था, आपके नकारने से वह ख़त्म थोड़े ही हो जाता है!’
इरफ़ान हबीब, इतिहासकार
“
‘आपको अगर मुग़ल शब्द से चिढ़ थी तो आप इसका नाम 'अकबर म्यूज़ियम' रख देते। अगर अकबर से कोई रंजिश थी तो 'दाराशिकोह म्यूज़ियम' रख सकते थे। अगर दाराशिकोह भी नहीं पसंद आ रहा था तो 'ताज म्यूज़ियम' रख देते।'
आर. सी. शर्मा, शोधकर्ता
टोकरी में बैठ कर भाग निकले थे शिवाजी?
शिवाजी काल के बड़े मराठी इतिहासकार प्रो० एस. एस. पागड़ी भी टोकरी में बैठ कर भाग जाने को एक क़िस्सा भर मानते हैं। 'नेशनल बुक ट्रस्ट' से शिवाजी पर प्रकाशित अपनी पुस्तक में वह सवाल करते है कि शिवाजी ने रामसिंह से 66 हज़ार रुपये उधार लिए थे, वे कहाँ गए? रामसिंह जयपुर के सवाई जयसिंह के पुत्र थे और 5 हज़ार से भी कम वाले मनसबदार थे।“
'यह कहना कि शिवाजी क़िले में क़ैद थे, बेतुका है। क़िले की जेल 'अंडरग्राउंड होती थीं और वहां से भागना नामुमकिन है। शिवाजी वहीं ग्वालियर रोड के तम्बू में नज़रबंद थे।'
एस. एस. पागड़ी, इतिहासकार
शिवाजी ने घूस दिया था?
रामसिंह से उधार लिए 66 हज़ार रुपयों में से उन्होंने कुछ सिपाहियों को घूस दी और कुछ मुग़ल दरबारियों को। बाक़ी का पैसा वह राह खर्च के लिए अपने पास रखकर फ़रार हो गए।इतिहास में दर्ज़ तारीखें इतनी उथली नहीं होती की उन्हें राजनीतिक चाकू से खुरच कर मिटाया जा सके। अलबत्ता उनके साथ कुछ फर्ज़ी तारीखों को ज़रूर जोड़ने की कोशिश की जा सकती है, भले ही देश और दुनिया का इतिहास उसे स्वीकार न करे।
मुग़लों का महत्व कम करने की कोशिश
साल 2014 से ही भारत के इतिहास में मुग़लों को ग़ैर महत्व का बनाकर पेश करने की कोशिशें शुरू हो गईं। ज़ाहिर है, आप यह तो साबित कर नहीं सकते थे कि सन 1526 में पानीपत के युद्ध में इब्राहिम लोधी को पराजित करके आगरा कूच करने और उसको राजधानी बना कर खुद को हिन्दुस्तान का बादशाह घोषित करने वाले शख़्स का नाम मुग़ल ज़हीरुद्दीन मुहम्मद बाबर नहीं, बल्कि घासीराम शास्त्री पुत्र लल्लूलाल आर्य था।क्या आप सारी दुनिया के सामने यह भी साबित कर पाएंगे कि ताजमहल का निर्माण राजा भगोनालाल ने अपनी महारानी कटोरी देवी की स्मृति में करवाया था? यक़ीनन नहीं!
इलाहाबाद से प्रयागराज
इलाहाबाद की जगह प्रयागराज लिखना तो प्रशासकीय मोहर बदल कर मुमकिन है, लेकिन इलाहाबादी बाशिंदे से प्रयागराजी नागरिक बन चुके वरिष्ठ कॉरपोरेट कंसल्टेंट पीयूष श्रीवास्तव पूछते है ‘इलाहाबादी अमरूद’ का नाम मोहर लगाकर 'प्रयागराजी अमरूद' किया जा सकता है? क्या आप मुझे मशहूर शायर का नाम अकबर इलाहाबादी से पलटकर अकबर प्रयागराजी रख देने की इजाज़त देंगे?’मुगल संस्थापना पर हमला
प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी की घोषणा हो जाने के बाद नरेंद्र मोदी ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में ही बल्लभभाई पटेल की 'स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी' का खूंटा ठोंक दिया। उत्तर के राजस्थान और दक्षिण के केरल और तमिलनाडु के महान मूर्तिशिल्पियों को बरफ़ में लगा कर 'मेकिंग ऑफ़ इण्डिया' के लीजेंड नरेंद्र मोदी चीन से मूर्ति 'कसवा' लाए इस नारे के साथ- कि दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति है। जब दुनिया की दूसरी मूर्तियों ने हाथ उठकर खड़ी होकर अपनी लम्बाई दिखाने लग गईं तो हमले की तोपें ताजमहल की और मोड़ दी गईं।साल 2018-19 में महान झूठ गढ़ा गया कि ताजमहल को देखने वालों की तादाद 7.5 लाख है जबकि 'स्टैच्यू' देखने वाले 26 लाख हैं। कुछ खोजी मंत्रालय के आँकड़े निकाल लाए- नहीं जी, ताजमहल आने वाले पर्यटक 70 लाख थे और 'स्टैच्यू' वाले 26 लाख।
मुगल स्थापत्य में दिलचस्पी कम?
विदेश से आने वाले राजकीय और कूटनीतिक अतिथियों को सरकारी तोहफे के रूप में संगमरमर देने की परंपरा थी, उसे बंद कर दिया गया। बीजेपी के आईटी सेल ने वॉट्सऐप उद्योग में खबर प्रसारित की कि मुग़लों द्वारा निर्मित पुरातात्विक इमारतों में लोगों की रुचि कम हो गई है।यह 'सत्य' भी प्रसारित किया गया कि ताजमहल की आय लगातार घट रही है और जितनी आमदनी नहीं, उससे ज़्यादा रख रखाव का खर्च हो रहा है।
पर्यटन मंत्री प्रह्लाद पटेल को नवम्बर 2019 में प्रश्नोत्तरकाल के दौरान लोकसभा को बताना पड़ा कि बीते 3 सालों में ताजमहल की आय 200 करोड़ है, जो देश के किसी भी ऐतिहासिक स्मारक की तुलना में सर्वाधिक है। इसके रखरखाव पर होने वाला खर्च 13.37 करोड़ है।
5 स्मारक
आय के बावजूद हाल के सालों में हुए घटिया रखरखाव के लिए पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने कस कर फटकारा भी था। पटेल ने यह भी बताया कि देश के केंद्रीय नियंत्रण वाले कुल स्मारकों की आधे से ज़्यादा आय वाले 5 स्मारक- 1.ताजमहल, 2. लाल क़िला, 3. क़ुतुब मीनार, 4. आगरा क़िला और 5. फतेहपुर सीकरी हैं। आईटी सेल के पर्यटक संख्या में गिरावट के दावों के विपरीत पर्यटन मंत्री ने बताया कि अकेले 2017-18 की तुलना में 2018-19 में ताजमहल में आने वाले पर्यटकों की तादाद में 6% की वृद्धि हुई है। पिछले 5 वर्षों में संख्या का यह ग्राफ निरंतर ऊपर जा रहा है।300 साल
साल 1526 से शुरू होकर 1857 तक खिंचने वाला मुग़लों का इतिहास किन्ही 2-4 व्यक्तियों की निजी गाथा नहीं बल्कि 3 सौ साल से ज़्यादा का एक काल है, जिसने भारत की जीवन शैली, सामंती आर्थिक ढाँचे, भूमि प्रबंधन, शिक्षा, कला, स्थापत्य, संगीत और संस्कृति को एक नयी रंगत दी। इसमें बहुत से तत्व तुर्की, अरबी और गज़नी के थे और बहुत से भारतीयता वाले।मुगलों का योगदान यह है कि उन्होंने इन सारे तत्वों के मिश्रण से एक नई भूमि और माटी को जन्म दिया जो वैश्विक इतिहास में मुगल संस्कृति के नाम से दर्ज़ है।
अपनी राय बतायें