कई अर्थशास्त्री यह कहते रहे हैं कि सालाना बजट से बहुत कुछ नहीं होता। असली चीज वे आर्थिक नीतियां और वह सोच होती है जिसकी झलक हमें बजट में दिखाई देती है। जीएसटी के जमाने में बजट की भूमिका वैसे भी कम हो गई है।

बजट से ठीक पहले चंद्राबाबू नायडू की दिल्ली यात्रा के क्या मतलब हैं? चंद्राबाबू नायडू और बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार दोनों ही अपने प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की बात करते रहे हैं।
देश की दीर्घकालिक आर्थिक गति और स्थिति के लिहाज से देखें तो यह बात सही हो सकती है। लेकिन एक सच यह भी है कि बजट सरकार की नीयत, उसकी राजनीतिक प्रतिबद्धता और दिशा को जानने का सबसे अच्छा पैमाना होता है। बजट हर साल आता है और इसके आँकड़े रोजाना चलने वाली राजनीतिक लफ्फाजी से अलग हालात को समझने का एक नया तर्क पेश करते हैं। कुछ चीजें, जो अन्यथा दबी-छुपी रह जाती हैं उन्हें भी बजट से अच्छी तरह समझा जा सकता है।