कई अर्थशास्त्री यह कहते रहे हैं कि सालाना बजट से बहुत कुछ नहीं होता। असली चीज वे आर्थिक नीतियां और वह सोच होती है जिसकी झलक हमें बजट में दिखाई देती है। जीएसटी के जमाने में बजट की भूमिका वैसे भी कम हो गई है।