मोदी-ब्रांड पापुलिज्म की सबसे बड़ी खराबी यह है इसका अभ्यासकर्ता समय के साथ अपने को या अपनी “जादूगरी” को बदल नहीं पाता या बदलने की क्षमता नहीं होती। वह यह सोचता है कि जो दुनिया 2014 में थी वही आज भी है और उसी सोच के साथ है। चूंकि इस पापुलिज्म का बड़ा भाग इसके अभ्यासकर्ता के एक खास किस्म के “अंतर्निष्ठ व्यक्तित्व” से आता है लिहाज़ा उसमें बदलाव संभव भी नहीं होता।