10 साल पहले जिस प्रधानमंत्री को लेकर तथाकथित ‘भ्रष्टाचार विरोधी’ आंदोलन चलाया गया था, जिसके बारे में यह साबित करने की कोशिश की गई थी कि उनके नेतृत्व वाली यूपीए-2 सरकार बेहद भ्रष्ट है, जिसके बारे में ‘आंदोलन’ के नाम पर ‘ओपिनियन’ तैयार की गई जिसमें मीडिया ने अपनी ‘एकपक्षीय’ भागीदारी से इस वैश्विक नेता को अपमानित किया, आज आश्चर्यजनक रूप से हर कोई उनकी बात करता दिख रहा है। यदि कुछ दक्षिणपंथी वैतनिक फ्रिंज तत्वों को छोड़ दें तो एक वरिष्ठ पत्रकार विश्वदीपक के अनुसार यह कहा जा सकता है कि सम्पूर्ण भारत का मध्यमवर्ग और बुद्धिजीवी समूह एक ‘सामूहिक पश्चाताप’ के दौर से गुज़र रहा है।