10 साल पहले जिस प्रधानमंत्री को लेकर तथाकथित ‘भ्रष्टाचार विरोधी’ आंदोलन चलाया गया था, जिसके बारे में यह साबित करने की कोशिश की गई थी कि उनके नेतृत्व वाली यूपीए-2 सरकार बेहद भ्रष्ट है, जिसके बारे में ‘आंदोलन’ के नाम पर ‘ओपिनियन’ तैयार की गई जिसमें मीडिया ने अपनी ‘एकपक्षीय’ भागीदारी से इस वैश्विक नेता को अपमानित किया, आज आश्चर्यजनक रूप से हर कोई उनकी बात करता दिख रहा है। यदि कुछ दक्षिणपंथी वैतनिक फ्रिंज तत्वों को छोड़ दें तो एक वरिष्ठ पत्रकार विश्वदीपक के अनुसार यह कहा जा सकता है कि सम्पूर्ण भारत का मध्यमवर्ग और बुद्धिजीवी समूह एक ‘सामूहिक पश्चाताप’ के दौर से गुज़र रहा है।
मनमोहन सिंह को वक़्त पर क्यों पहचान नहीं सके लोग?
- विचार
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- 31 Dec, 2024

डॉ. मनमोहन सिंह को पहचानने में भूल हुई? पश्चाताप के आँसू रोता भारतीय मीडिया और विचारों की दलदली भूमि पर बैठा भारत का बुद्धिजीवी वर्ग पछतावे में यह सोच रहा है कि उनसे इतनी बड़ी भूल कैसे हो गई?
यह कहा जाए कि आज शायद ही कोई होगा जो डॉ. मनमोहन सिंह को ‘एक्सीडेंटल प्राइममिनिस्टर’ मानता होगा। यदि सामाजिक सुधार, आर्थिक सुधार, आमलोगों के जीवन में बदलाव आदि को पैमाना मानें तो 2024 के अंत तक, मेरी नजर में डॉ. मनमोहन सिंह भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के बाद सर्वश्रेष्ठ प्रधानमंत्री हैं। पंडित नेहरू के बाद कोई ऐसा प्रधानमंत्री नहीं रहा जिसने सामाजिक सुधारों जिसे आंबेडकर के शब्दों में ‘सामाजिक न्याय’ कहा जाना चाहिए, में इतनी बड़ी क्रांति की हो।