महात्मा गांधी बीसवीं सदी के सबसे बड़े मनुष्य हैं। यह बात किसी भारतीय ने नहीं, अमेरिकी पत्रकार लुई फिशर ने कही थी। हालाँकि वे यह कहना चाहते थे कि संभवतः गांधी संपूर्ण मानव इतिहास के सर्वश्रेष्ठ लोगों में से एक हैं। लेकिन एक पत्रकार के नाते उन्होंने अपनी टिप्पणी उसी सदी तक सीमित कर दी जिसमें वे सक्रिय थे। लेकिन सवाल उठता है कि इस गांधी की शक्ति का रहस्य क्या था? इसी तरह बीसवीं सदी के सबसे महान वैज्ञानिक आइंस्टीन ने कहा था कि आने वाली पीढ़ियों को यह यकीन ही नहीं होगा कि हांड़ मांस का ऐसा आदमी कभी धरती पर चला था। आखिर कौन सी वह प्रेरणा थी जिसके कारण वे बिना हथियार उठाए और घृणा और हिंसा के बिना इतने बड़े देश को स्वतंत्र कर सके और पूरी दुनिया को अहिंसा की राजनीतिक शक्ति का अहसास दिला सके। गांधी के लिए वह शक्ति `राम’ ही थे। बचपन से आखिर तक उनके मुंह पर राम का नाम रहा। उन्होंने उस नाम को कभी बिसराया नहीं। सन 1947 में जब उनकी हत्या की आशंका प्रबल हो गई तो उन्होंने कहा कि हो सकता है कि मैं मार दिया जाऊं। लेकिन मैं अपनी अच्छी मौत उसे ही मानूंगा जब मेरे मन में हत्यारे के लिए कोई घृणा का भाव न हो और मेरे मुंह से अंतिम समय में `राम’ नाम निकले। शायद यह नाम का ही प्रताप था कि उन्होंने गोली लगने के बाद अपने अंतिम समय में `हे राम’ ही कहा।
महात्मा गांधी के राम और सत्य
- विचार
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- 15 Jan, 2024

महात्मा गांधी अपने बचपन से आखिर तक भगवान राम के भक्त रहे। जानिए, गांधी के राम किस तरह के आदर्श थे और उनके मुंह पर राम का नाम क्यों रहा।
गांधी जब नोआखाली में दंगा शांत कराते हुए घूम रहे थे तब उन्हें बहुत तेज बुखार था। उनकी निजी चिकित्सक डॉ. सुशीला नैयर ने उन्हें दवा देनी चाही। लेकिन उन्होंने दवा लेने से साफ़ मना कर दिया। उन्होंने कहा कि मैं रामनाम का पाठ करूंगा। अगर वे इस देश से और काम कराना चाहते हैं तो इसे बचाएंगे वरना इसे छीन लेंगे। इस विश्वास के साथ उनकी तबियत सुधरी और उन्होंने लोगों के हृदय से नफरत निकालने का काम किया। गांधी बहुत तार्किक और व्यावहारिक थे लेकिन राम के नाम को वे लेकर उनका दृष्टिकोण आस्था पर आधारित था। वे इस नाम की शक्ति से परिचित थे और निरंतर इसका प्रयोग अपने निजी और राजनीतिक जीवन में कर रहे थे। उनके लिए राम के नाम का अर्थ सगुण से ज्यादा निर्गुण था। हालांकि वे तुलसीदास के रामचरित मानस के अनन्य पाठक थे और उसे दुनिया के सर्वश्रेष्ठ ग्रंथों में एक बताते थे। इसीलिए वे भारत में रामराज्य लाना भी चाहते थे। लेकिन वे बड़े ग्रंथों का शाब्दिक अर्थ निकालने की बजाय उसकी दार्शनिक व्याख्या करते थे और उसे अपने दृष्टिकोण के अनुरूप ढालते थे।
लेखक महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार हैं।