उनके नेतृत्व में भारत आज़ाद हुआ। वह राष्ट्रपिता कहलाते हैं लेकिन वह सिनेमा को पसंद नहीं करते थे। जीवन के अंत तक महात्मा गाँधी को कोई भी सिनेमा प्रेमी विद्वान या फिल्मकार यह नहीं समझा सका कि सिनेमा के अविष्कार के बाद दुनिया दो कालखंड में बंट गयी। एक तो सिनेमा के जन्म से पहले की दुनिया और दूसरी सिनेमा के जन्म के बाद की दुनिया।
गाँधी-150: सिनेमा से हमेशा असहमत रहे गाँधी जी
- विचार
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- 29 Sep, 2019

महात्मा गाँधी के विचारों से प्रभावित होकर ना जाने कितनी फ़िल्में बनीं और आज भी बन रही हैं लेकिन फ़िल्में उन्हें कभी प्रभावित नहीं कर सकीं।
दुनिया में कम्प्यूटर के आगमन से पहले मनोरंजन के क्षेत्र को जिस तरह सिनेमा ने विस्तार दिया और नए-नए रास्ते बनाए, वैसा विश्व में पहले कभी नहीं हुआ था। भारत में 90 के दशक से पहले तक सिनेमा के स्वप्नलोक, जादू, नशा या आकर्षण ने कई पीढ़ियों को जकड़े रखा। जब सिनेमा नया-नया था तब इसके जादू का क्या असर था, इसका अंदाज अब लगाना मुश्किल है।