हरि अनंत हरिकथा अनंता, कहहिं सुनहिं बहुविधि सब संता। तुलसीदास की इस चौपाई की तर्ज़ पर महात्मा गाँधी से जुड़े क़िस्सों-कहानियों का भी एक ऐसा लंबा सिलसिला है जिन्हें उनके प्रशंसक और आलोचक अपनी ज़रूरत और सहूलियत के हिसाब से अलग-अलग संदर्भों में इस्तेमाल करते रहते हैं।

देश को अंग्रेजों की ग़ुलामी से मुक्ति दिलाने वाले, सत्य और अहिंसा के संदेश को दुनिया तक पहुंचाने वाले महात्मा गाँधी की हम 150वीं जयंती मनाने जा रहे हैं। इस मौक़े पर ‘सत्य हिंदी’ महात्मा गाँधी के जीवन से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर एक श्रृंखला प्रकाशित करने जा रहा है, जिसकी यह पहली कड़ी है।
अपनी पैदाइश के 150 साल और मृत्यु के 71 साल बाद महात्मा गाँधी की प्रासंगिकता पर बात करते हुए उनका एक बड़ा करिश्मा इस बात में दिखता है कि उन्होंने अपने निजी आचरण के उदाहरण के ज़रिये व्यक्तिगत नैतिकता और त्याग को हिंदुस्तान में राजनीति की आवश्यक शर्त के तौर पर स्थापित कर दिया है। भले ही चुनावी राजनीति में अब तमाम दाँव-पेच और पैंतरे भी वोटरों को लुभाने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं लेकिन साफ़-सुथरी निजी छवि की अहमियत अब भी ख़त्म नहीं हुई है।