गाँधी जी से जुड़े ऐसे बहुत से किस्से हैं जिनमें इस बात की झलक मिलती है कि वह छोटी से छोटी चीज़ की अहमियत को भी नज़रअंदाज़ नहीं करते थे, चाहे वह एक कागज़ या रूई का टुकड़ा या पेंसिल ही क्यों न हो। साथ ही एक-एक पैसे के हिसाब को लेकर भी बहुत सचेत रहते थे। उनके आश्रम में रहने वालों के खाने-पीने की सामग्री, कपड़े वगैरह सब सामान कहाँ से आ रहा है और कौन उसका हिसाब रख रहा है, गाँधी जी की इस पर कड़ी नज़र रहती थी।

देश को अँग्रेज़ों की ग़ुलामी से मुक्ति दिलाने वाले, सत्य और अहिंसा के संदेश को दुनिया तक पहुँचाने वाले महात्मा गाँधी की हम 150वीं जयंती मनाने जा रहे हैं। इस मौक़े पर ‘सत्य हिंदी’ महात्मा गाँधी के जीवन से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर एक श्रृंखला प्रकाशित कर रहा है। इस कड़ी में पढ़िए कि आख़िर क्यों गाँधी जी ने एक मोची को अपना गुरु बना लिया।
गाँधी जी इस बात से वाक़िफ़ थे कि लोग उनकी अपील पर रूपया, पैसा, गहने, सामान वग़ैरह दान दे देते थे। गाँधी जी नहीं चाहते थे कि कोई ख़र्चों को लेकर उनपर या उनके सहयोगियों पर उंगली उठाये। इसलिए वह ख़ुद पर भी बहुत सख़्ती बरतते थे। गाँधी जी की नज़र में उनसे मिलने आने वाले लोगों के लिए छोटा-बड़ा या ग़रीब-अमीर का कोई भेद नहीं था और वह सबसे बराबर आत्मीयता से मिलते थे।