महाराष्ट्र में सत्तासीन दल शिवसेना 17वीं सदी में किसान प्रतिरोध के सबसे बड़े नेता और मराठा साम्राज्य के संस्थापक शिवाजी की समर्थक है और उसका नाम भी शिवाजी के नाम पर पड़ा। महाराष्ट्र की राजनीति में इस समय लगातार छापामार राजनीति चल रही है। छापेमार राजनीति का एक और उदाहरण पेश करते हुए सत्तासीन सरकार ने अन्य पिछड़े वर्ग (ओबीसी) की जनगणना कराने का प्रस्ताव विधानसभा में पारित करा दिया है। महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष और कांग्रेस नेता नाना पटोले ने जाति जनगणना कराने को लेकर विधानसभा में प्रस्ताव पेश किया और सत्तासीन दलों सहित सदन का बड़ा हिस्सा अवाक था। जाति जनगणना के प्रस्ताव को सभी दलों को एक स्वर में समर्थन करना पड़ा और एकमत से प्रस्ताव पारित करना पड़ा।
महाराष्ट्र में जाति जनगणना का प्रस्ताव पारित होने से फँसेंगे मोदी-शाह?
- विचार
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- 10 Jan, 2020

जाति जनगणना पर महाराष्ट्र सरकार प्रस्ताव पास करने से राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति आदि को दलित व पिछड़ी जाति बताकर वंचित तबक़े का हितैशी होने का दावा करने वाली बीजेपी फँसती नज़र आ रही है।
देश में जातीय जनगणना की लंबे समय से माँग होती रही है। 1980 में इंदिरा गाँधी सरकार के कार्यकाल में ओबीसी के लिए आरक्षण की सिफ़ारिश करते समय मंडल कमीशन ने 1931 की जनगणना को आधार बनाकर अनुमान लगाया था कि अगर सभी जातियों की प्रजनन दर समान रही हो तो देश में ओबीसी की संख्या 52 प्रतिशत है। कमीशन ने सिफ़ारिश की थी कि जातीय जनगणना कराई जाए, जिससे सही संख्या और सामाजिक-शैक्षणिक व आर्थिक स्थिति के सटीक आँकड़े आ सकें और देश के इस बड़े वर्ग के उत्थान के लिए लक्षित क़दम उठाए जा सकें। मंडल कमीशन की सिफ़ारिशें लागू होने के बाद पिछले दरवाज़े से तमाम जातियों को ओबीसी आरक्षण में घुसाया गया, जिससे इस वर्ग की संख्या में लगातार बढ़ोतरी होती रही है।