"आखेट पर निकले राजा दुष्यंत ने अद्वितीय सुंदरी बनवाला शकुंतला को देख अपनी कामपीड़ित दशा का वर्णन करते हुए कहा कि मेरी दशा तो पवन कंपित कौशेय ध्वज जैसी हो गई है। मेरी देह तो आगे बढ़ रही है किंतु मेरा विवश मन पीछे मुड़ जा रहा है, जैसे चीनी कौशेय का ध्वज वायु में लहरा रहा है।"

भारत और चीन के रिश्ते बौद्ध के समय से हैं लेकिन अब हम शत्रु कैसे हो गये हैं!
पांचवीं शताब्दी के संस्कृत साहित्य के सर्वश्रेष्ठ कवि और नाटककार कालिदास द्वारा रचित सुप्रसिद्ध नाटक 'अभिज्ञान शाकुंतलम्' में उपरोक्त प्रसंग आया है। कौटिल्य कृत 'अर्थशास्त्र', ‘महाभारत' और 'मनुस्मृति' में भी चीनी रेशम और उससे बने कपड़ों की चर्चा मिलती है।
बाणभट्ट कृत 'हर्षचरित' से पता चलता है कि चीन से रेशम के अतिरिक्त सिंदूर, कपूर, नाशपाती, आडू और उच्च कोटि के चमड़े का आयात भारत में होता था। जाहिर है कि भारत और चीन के व्यापारिक संबंधों का सिलसिला बहुत पुराना है। आगे चलकर बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के कारण ये संबंध और प्रगाढ़ हुए।
लेखक सामाजिक-राजनीतिक विश्लेषक हैं और लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में असि. प्रोफ़ेसर हैं।