इस बात के लिए भारत के क़रीब 19 करोड़ मुसलमानों की तारीफ़ करनी पड़ेगी कि किस तरह अपने आप को ‘अधीन’ मानते हुए उन्होंने ख़ुद को ‘वे’ में बदल जाने दिया यानी व्यापक हिंदू समाज के लिए वे उनसे अलग होकर ‘दूसरे’ बन गये। और इस तरह इन ‘वे’ (मुसलमानों) के विरुद्ध व्यापक हिंदू समाज धीरे-धीरे भगवा के विस्तार के भीतर सिमटता गया। जैसे-जैसे यह भगवा विस्तार देश के भूगोल का स्थायी भाव बनता जाएगा, वैसे-वैसे हिंदुओं और मुसलमानों के बीच संबंधों की मौजूदा संरचना स्थायी बन जाएगी।