केंद्रीय क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कुछ दिन पहले एक बयान दिया था जिसने न सिर्फ़ फ़िल्म जगत बल्कि आम लोगों को भी हैरान कर दिया। प्रसाद ने बीते शनिवार को कहा था, ‘एनएसएसओ (नेशनल सैंपल सर्वे ऑफ़िस) के बेरोज़गारी से जुड़े आंकड़े पूरी तरह ग़लत हैं।’ मुंबई में पत्रकारों से बातचीत के दौरान उन्होंने यह भी कहा कि अगर फ़िल्में करोड़ों का कारोबार कर रही हैं तो फिर देश में मंदी कैसे है।
प्रसाद ने कहा था, ‘मैं एनएसएसओ की रिपोर्ट को ग़लत कहता हूं और पूरी ज़िम्मेदारी के साथ कहता हूं। उस रिपोर्ट में इलेक्ट्रॉनिक मैन्युफ़ैक्चरिंग, आईटी क्षेत्र, मुद्रा लोन और कॉमन सर्विस सेंटर का ज़िक्र नहीं है। क्यों नहीं है? हमने कभी नहीं कहा था कि सबको सरकारी नौकरी देंगे। हम ये अभी भी नहीं कह रहे हैं। कुछ लोगों ने आंकड़ों को योजनाबद्ध तरीके से ग़लत ढंग से पेश किया। मैं यह दिल्ली में भी कह चुका हूं।’
इसके बाद क़ानून मंत्री ने अपनी टिप्पणी पर सफाई देते हुए प्रेस को बयान जारी किया और कहा, ‘मैंने शनिवार को मुंबई में तीन फ़िल्मों की एक दिन में 120 करोड़ रुपये कमाई होने की बात कही थी, जो कि अब तक की सबसे बड़ी कमाई है। यह तथ्यात्मक रूप से सही है। मुंबई फ़िल्मों की राजधानी है और मैंने वहीं यह बात कही थी। हमें अपनी फ़िल्म इंडस्ट्री पर बहुत गर्व है जिससे लाखों लोगों को रोज़गार मिला हुआ है। टैक्स कलेक्शन में भी इस इंडस्ट्री का बड़ा योगदान है।’
प्रसाद ने आगे लिखा, ‘मैंने अर्थव्यवस्था को मज़बूती देने के लिए सरकार की ओर से उठाए जा रहे क़दमों की बात भी कही थी। मोदी सरकार हमेशा आम लोगों की फ़िक्र करती है। मीडिया से बातचीत का पूरा वीडियो मेरे सोशल मीडिया अकाउंट पर मौजूद है। मुझे दुख है कि मेरे बयान के एक हिस्से को संदर्भों से काटकर दिखाया गया। एक संवेदनशील व्यक्ति होने के नाते मैं अपना बयान वापस लेता हूं।’
क़ानून मंत्री के पहले वाले बयान के बाद कई तरह के तर्क-वितर्क और कई लोगों के सवाल खड़े हो गए कि क्या वाक़ई में मंदी का ताल्लुक सिनेमा और फ़िल्मों की कमाई से है? क्या रविशंकर प्रसाद को इस पद पर होते हुए यह बयान देना शोभा देता है? इससे पहले वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि लोग ओला-उबर कारों से चल रहे हैं, जिस वजह से कारों की बिक्री कम हो गई है और इस वजह से ऑटो सेक्टर में मंदी आई है। साफ़ सी बात यह है कि मंदी की मार को हम किसी तर्क के साथ पेश नहीं कर सकते बल्कि जो मुख्य कारण हैं उन्हें उजागर किया जाए तो ज़्यादा बेहतर होगा।
हर साल कई फ़िल्में रिलीज़ होती हैं। इनमें कुछ सुपरहिट तो कुछ फ्लॉप रहती हैं। अगर इसे हम आर्थिक मंदी की नज़र से देखें तो देश में कभी भी मंदी का दौर रहा ही नहीं। पिछले पांच सालों के आंकड़ों की बात करें तो फ़िल्मों ने अच्छा कारोबार किया है लेकिन इसके बाद भी इस बार जीडीपी दर 5 फ़ीसदी रह गई है। बीते वित्तीय वर्ष की इसी तिमाही के दौरान जीडीपी दर 8 प्रतिशत थी।
विशेषज्ञों की मानें तो अर्थव्यवस्था की रफ़्तार धीमी हो रही है और ऐसा पिछले तीन सालों में होते ज़्यादा देखा गया है। अगर इन्हीं तीन सालों की हिट फ़िल्मों के आंकड़ों की बात करें तो कई फ़िल्मों ने ताबड़तोड़ कमाई की है लेकिन इसके बाद भी जीडीपी में कोई वृद्धि दर्ज नहीं की गई है।
2016 में ‘सुल्तान’ और ‘बजरंगी भाईजान’ ने 300 करोड़ का आंकड़ा पार किया था तो साल 2017 में ‘बाहुबली 2’ ने 500 और ‘टाइगर ज़िंदा है’ ने 339 करोड़ की कमाई की थी। साल 2018 में ‘पद्मावत’ ने 284 करोड़ व ‘संजू’ ने 336 करोड़ की शानदार कमाई की थी। 2019 में फ़िल्म ‘कबीर सिंह’ ने 273 करोड़, ‘उरी’ ने 243 करोड़ की कमाई की। ‘वॉर’ ने 262 करोड़ की कमाई की, जो कि 2 अक्टूबर को रिलीज़ हुई थी और इसी के साथ 2 अन्य फ़िल्में जोकर और सायरा रिलीज़ हुई थीं और उस दिन की कुल कमाई 120 करोड़ रुपये हुई।
आंकड़ों के हिसाब से देखें तो कई सालों से फ़िल्में हिट हो रही हैं लेकिन इनका जीडीपी पर कभी असर नहीं पड़ा।
जीडीपी का आकलन मुख्य तौर पर उद्योग, कृषि, खनन, बिजली, कंस्ट्रक्शन, मैन्युफैक्चरिंग, व्यापार व सर्विसेज़ यानी अन्य सेवाओं के आधार पर होता है, जिसमें उत्पादन बढ़ने व घटने के आधार पर जीडीपी दर दर्ज की जाती है। इससे यह पता चलता है कि अगर यह आंकड़ा बढ़ा है तो देश की अर्थव्यस्था में सुधार है लेकिन अगर यह घटा है तो अर्थव्यस्था गिरावट की ओर है।
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