लक्षद्वीप एक बहुत ही शांत द्वीप रहा है जहां बीजेपी ने वही प्रयोग शुरू कर दिया है जो वह उत्तर भारत में कर चुकी है। बीजेपी ने जब से गुजरात के एक पूर्व विधायक प्रफुल पटेल को यहां का प्रशासक बना कर भेजा है तभी से यह समस्या शुरू हो गई है। उन्होंने आते ही अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया।
विकास प्राधिकरण 2021
लक्षद्वीप विकास प्राधिकरण विनियमन 2021 का जो मसौदा बनाया गया है, उसके बाद से ही स्थानीय स्तर पर विरोध शुरू हो गया है। यहां के लोग इस मसौदे को लोगों की भूमि को हड़पने वाला बता रहे हैं। दरअसल, हमें लक्षद्वीप की सांस्कृतिक भौगोलिक पृष्ठभूमि को समझना चाहिए तब इस विवाद को समझने में आसानी होगी।
विवादों से कोसों दूर
मालाबार अंचल की संस्कृति को समेटे लक्षद्वीप वह जगह है जहां महिलाओं की सत्ता रही है। घर की मुखिया महिला होती है। मुझे कुछ समय लक्षद्वीप के कई अन्य द्वीपों पर वक़्त गुजारने का मौका मिला था तब मैंने वहां के धर्म, रीति रिवाज और संस्कृति को समझने का प्रयास किया। मैंने यहां कभी कोई विवाद होते नहीं सुना है, झगड़ा-फसाद तो दूर की बात है।
लक्षद्वीप में सिर्फ एक द्वीप बंगरम को देसी-विदेशी पर्यटकों के लिए खोला गया था बाक़ी द्वीप पर सैलानियों को ठहरने की इजाजत नहीं थी। ऐसा इसलिए ताकि इस द्वीप की सांस्कृतिक सामाजिक और प्राकृतिक धरोहर को सुरक्षित रखा जा सके।
केरल पर है निर्भरता
यह मूंगे के कई द्वीप पर बसा है जहां का शासन-प्रशासन केंद्र के अधीन है। यह द्वीप पूरी तरह केरल पर निर्भर रहा है। अनाज, शाक सब्जी और फल से लेकर अन्य जरुरी सामान लेकर पानी का जहाज हफ्ते में तीन-चार फेरे लगाता है। यह जहाज कोच्चि से करीब-सोलह अठारह घंटे में लक्षद्वीप की राजधानी कावरेत्ती पहुंचता है।
मुझे याद है जब कावरेत्ती में दिल्ली प्रशासन के एक बड़े अधिकारी के घर दस दिन से ज्यादा रुकना हुआ तो मैंने उन्हें शाक सब्जी खत्म होने पर एमवी टीपू सुलतान नाम के कार्गो जहाज के जेटी पर इन्तजार करते देखा था। वजह लक्षद्वीप में केला-पपीता के अलावा कुछ भी नहीं होता था।
हम भी जब कोच्चि से चले थे तो पंद्रह दिन का राशन आदि लेकर गये थे। तीन द्वीप कावरेत्ती, अगाती और बंगरम में हमें रुकने का अवसर एक खास परमिट की वजह से मिला था जिसे केंद्र सरकार से बनवाया गया था। वर्ना बंगरम द्वीप के अलावा कहीं और रुकने की इजाज़त नहीं थी।
धार्मिक मामलों में दख़ल
पर जब से गुजरात के पूर्व विधायक प्रफुल्ल पटेल को नया प्रशासक नियुक्त किया गया तभी से लक्षद्वीप के लोगों की दिक्कतें बढ़ गई। पटेल ने कई अभिनव प्रयोग शुरू कर दिए। अब यहां कोई धार्मिक विवाद तो हो नहीं सकता था क्योंकि एक ही धर्म के लोग थे इसलिए उन्होंने इनके धार्मिक मामलों में टांग अड़ाना शुरू किया।
मूल रूप से लक्षद्वीप के लोगों का रिश्ता-नाता केरल के मालाबार अंचल से जुड़ा है और वे कोच्चि से आते-जाते हैं। अब नए प्रशासक ने इस रूट की जगह कर्नाटक के मंगलूर से इसे जोड़ने की कवायद की है।
कर्नाटक में बीजेपी की सरकार है और केरल में वाम मोर्चे की। इससे इनकी मंशा को आसानी से समझा जा सकता है। फिर लक्षद्वीप विकास प्राधिकरण विनियमन 2021 लाया गया जिसमें दो प्रमुख मुद्दे थे जिसपर विरोध शुरू हुआ। पहला वो अंचल जहां शराब प्रतिबंधित थी, वहां से प्रतिबंध हटाना ताकि सभी को शराब मिल सके।
गौरतलब है कि बंगरम द्वीप जहां देसी-विदेशी सैलानी जाते हैं वहां शराब उपलब्ध होती है क्योंकि वहां कोई स्थानीय आबादी नहीं है। कुल दर्जन भर कॉटेज हैं। लक्षद्वीप प्रशासन का अपने दो कॉटेज हैं जिसमें मैं भी रुक चुका हूं। खाने-पीने के सामान के साथ अगाती से ही हमारे साथ रसोइया भेजा गया था क्योंकि समूचा द्वीप कैसिनो होटल रिसार्ट के अधीन है और उसका प्रबंधन भी उनके हाथ में ही रहता है।
बीजेपी के नए प्रशासक की मंशा से साफ है कि वे देर-सबेर अन्य द्वीप में शराब से प्रतिबंध हटाकर इसे भी सैलानियों के लिए खोलने की कवायद करने वाले हैं। अगर यह हुआ तो बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण होगा।
पशु संरक्षण कानून की आड़
दूसरा मुद्दा यहां के लोग मांसाहारी हैं। तटीय अंचल पर अमूमन ज्यादातर लोग मांसाहारी होते हैं। जिसमें मछली मुख्य होती है जो आसानी से उपलब्ध है। इसके अलावा मटन-मुर्गा आदि भी। अब लक्षद्वीप पशु संरक्षण कानून बनाया जा रहा है, जिसमें गाय, बैल, भैंस आदि मारने पर प्रतिबंध लगाया जाएगा।
ध्यान रहे बीजेपी शासित गोवा में आपको बीफ आसानी से मिलता है। कैंडोलिम में तो हर रेस्तरां शाम को बाहर बोर्ड लगा कर बताता है कि आज के मीनू में बीफ का कौन सा व्यंजन है। यह सब अपना देखा हुआ है। पर लक्षद्वीप में वे इस पर प्रतिबंध लगाना चाहते हैं। क्यों, क्या यह समझना मुश्किल है?
सांसद ने जताई आपत्ति
यही वजह है कि लक्षद्वीप के सांसद मोहम्मद फैज़ल ने इसका विरोध करते हुए कहा, “इस अधिनियम के तहत वह यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि मुझे क्या खाना चाहिए या मुझे क्या नहीं खाना चाहिए। वह मेरा संवैधानिक अधिकार है। वे मेरा संवैधानिक अधिकार छीन रहे हैं।” इस वजह से प्रशासक और स्थानीय नेताओं के बीच विवाद शुरू हो गया है।
तुरंत हटाने की मांग
सोशल मीडिया पर #SaveLakshadweep ट्रेंड कर चुका है। कांग्रेस, वाम दलों ने इस मुद्दे को लेकर अपनी नाराजगी जता दी है। भाकपा माले ने लक्षद्वीप के प्रशासक को फ़ौरन हटाने की मांग की है। राजनीतिक दलों को यह आशंका है कि बीजेपी शांत रहे लक्षद्वीप के माहौल में भी कहीं उत्तर भारत की तरह आग न लगा दे।
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