राजनीतिशास्त्री योगेंद्र यादव चुनौती दे रहे हैं कि आज सारे राजनीतिक चिंतक कहां चले गए? वे उन्हें ढूढ रहे हैं और उनकी तलाश जारी रहनी चाहिए। लेकिन वह कथन तो सभी के ध्यान में होगा कि जो बंगाल आज सोचता है वह भारत कल सोचेगा। यानी उस प्रदेश के पास देश को बौद्धिक नेतृत्व देने की क्षमता थी। पर आज बंगाल के पास भारत को राह दिखाने वाली मशाल नहीं है। आज स्थिति उल्टी हो गई है। जो आज शेष भारत है वही कल को बंगाल को भी होना है। यानी गुजरात, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और उत्तराखंड में संघ परिवार ने शासन, समाज और विकास का जो मॉडल थोपने की कोशिश की है वही एक दिन पश्चिम बंगाल पर भी थोपा जाएगा। पश्चिम बंगाल में एक मेडिकल कॉलेज में पीजी की इंटर्न डॉक्टर के बलात्कार और हत्या का मामला स्त्री अधिकारों, नागरिक अधिकारों की सुरक्षा के दायरे से निकल कर ममता बनर्जी की सरकार गिराने तक चला गया है। मंगलवार को पीड़ित डॉक्टर और नारी समाज के लिए न्याय मांगने के लिए आयोजित नवान्न अभियान जिस अभद्र और हिंसक तरीके से उपस्थित हुआ है उससे नारी समाज दहल गया है और बंगाल का समाज भी चौकन्ना हो गया है।
महिलाओं की सुरक्षा को निकले हुड़दंगीः क्या बुद्धदेव की गति पाएंगी ममता?
- विचार
- |
- |
- 28 Aug, 2024

क्या स्त्रियों की सुरक्षा को प्रतिद्वंद्वी राजनीति और सांप्रदायिक, हिंसक विमर्श के सहारे छोड़ देना चाहिए या उसके लिए किसी नई किस्म की राजनीति की दरकार है?
अचानक प्रकट हुए अराजनीतिक संगठन पश्चिम बांग्ला छात्र समाज और संग्रामी जत्था मोर्चा ने पूरे शहर में जो तांडव मचाया उससे लग रहा है कि यह कोई अराजनीतिक संगठन नहीं है। यह संगठन भाजपा के मुखौटे थे और बाद में जिस तरह से बुधवार को भाजपा ने `दमन’ के विरुद्ध बंद का आयोजन किया उससे इस अराजनैतिक संगठन की राजनीति उजागर हो गई। छात्र समाज और संग्रामी जत्था के लोग मंगलवार को प्रदर्शन के दौरान न सिर्फ ममता बनर्जी का इस्तीफा मांग रहे थे बल्कि उन पर गालियों की बौछार कर रहे थे और पुलिस वालों पर हमले कर रहे थे। विडंबना देखिए कि मां बहनों की सुरक्षा के लिए निकले लोग मां बहनों की गालियां बरसा रहे थे। वे पुलिस की बसें जला रहे थे और अवरोध के लिए लगाई गई बैरिकेड और रेलिंग उखाड़ रहे थे। साथ ही वे यह भी कह रहे थे कि ममता मुसलमानों का पक्ष लेती हैं इसलिए उन्हें सत्ता से हटना चाहिए। शायद इसीलिए पुलिस ने उन पर पानी की बौछार की और भाजपा नेताओं के दावे के अनुसार 133 लोग जख्मी हुए। स्त्रियों की सुरक्षा के लिए किए गए इस हिंसक प्रदर्शन से आरजी कर मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों ने भी अपनी दूरी बनाई है और इसकी निंदा कर रहे हैं। दरअसल इस प्रदर्शन में महिलाएं तो थी ही नहीं। ज्यादा से ज्यादा पुरुष थे और वे जो छात्र होने का दावा कर रहे थे उनका छात्र जीवन और शिक्षा संस्थाओं से कोई लेना देना नहीं लग रहा था।
लेखक महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार हैं।