कश्मीर के अनंतनाग ज़िले के एक गाँव में 40 साल के कश्मीरी पंडित सरपंच अजय पंडिता की आतंकवादियों द्वारा हत्या ने कश्मीरी पंडितों के पुराने घावों को न सिर्फ़ कुरेदा है बल्कि इस घटना ने पंडित समुदाय के साथ 1990 के दशक में कश्मीर घाटी में हुए भयंकर अत्याचार की छवि को पुनर्जीवित कर दिया है। ऐसी स्थिति होने के बावजूद इस समय सभी को शांत विचार-विमर्श की ज़रूरत है, न कि भावनात्मक प्रतिक्रिया की।
अजय पंडिता की हत्या: अधिकांश मुसलिम कश्मीरी पंडितों के ख़िलाफ़ नहीं
- विचार
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- 11 Jun, 2020

अजय पंडिता ने अपने गाँव में सरपंच का चुनाव जीता था। शायद 95% मतदाता मुसलिम थे, यह दर्शाता है कि कश्मीरी मुसलमानों में से अधिकांश आज कश्मीरी पंडितों के ख़िलाफ़ नहीं हैं बल्कि उन्हें अतीत में पंडितों के प्रति किए गए घोर अपराध का एहसास है। मेरा मानना है कि 99% लोग अच्छे हैं, चाहे हिंदू, मुसलिम, सिख, ईसाई आदि कोई भी हों। इसलिए 99% कश्मीरी मुसलमान अच्छे लोग हैं जिन्हें कश्मीरी पंडितों से कोई दुश्मनी नहीं है।
अजय पंडिता का परिवार 1990 के दशक में कश्मीर से पलायन कर गया था जब कश्मीरी पंडितों पर उग्रवाद और हमले अपने चरम पर थे। लगभग 2 साल पहले ही अजय पंडिता कश्मीर लौटे थे। उन्होंने अपने गाँव में सरपंच का चुनाव लड़ा और जीता। यह तथ्य कि शायद 95% मतदाता मुसलिम थे, यह दर्शाता है कि कश्मीरी मुसलमानों में से अधिकांश आज कश्मीरी पंडितों के ख़िलाफ़ नहीं हैं बल्कि उन्हें अतीत में पंडितों के प्रति किए गए घोर अपराध का एहसास है। यह केवल एक छोटा अल्पसंख्यक भाग है जो पंडितों के प्रति शत्रुता का भाव रखता है लेकिन चिंता की बात यह है कि यह अल्पसंख्यक भाग सशस्त्र है। बाक़ी के निहत्थे बहुमत लोग केवल अपनी जान गँवाने के डर से, मशीनगन से लैस कुछ मुट्ठी भर लोगों के सामने मूकदर्शक बने रहेंगे।