बाबूलाल मरांडी
बीजेपी - धनवार
आगे
बाबूलाल मरांडी
बीजेपी - धनवार
आगे
हेमंत सोरेन
जेएमएम - बरहेट
आगे
‘ट्रम्प एक बीमार इंसान हैं और बीमार मंडली से घिरे हुए हैं।’, ‘ व्यक्ति के रूप में अकेले डोनाल्ड ट्रम्प अमेरिकी लोकतंत्र के लिए ख़तरनाक हैं।’, ‘ ट्रम्प झूठ के पुलिंदा हैं, उनके दावे सभी खोखले हैं।’, ‘ ट्रम्प अपनी मुद्राओं और बड़बोलेपन से लोगों को आतंकित करते हैं।’ ‘कमला हैरिस शालीन, संयत और कुशल प्रशासक हैं।’, ‘ कमला ट्रम्प से आगे निकल चुकी हैं।’ ‘कमला इतिहास बनाने की दिशा में अग्रसर हैं।’ ‘ मैं कमला को वोट दूंगा, ट्रम्प को नहीं।’
अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति पद के दावेदार डेमोक्रेट की प्रत्याशी व वर्तमान उपराष्ट्रपति कमला हैरिस और देश की सबसे पुरानी पार्टी रिपब्लिकन के प्रत्याशी व पूर्व राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प के बीच पहली बहस (शायद आखिरी!) को हुए तीन दिन बीत चुके हैं। लेकिन, मीडिया में दोनों की बहस के प्रभाव को लेकर ज़बरदस्त बहस छिड़ी हुई हैं; चैनल रहें या प्रिंट मीडिया या सोशल मीडिया, तीनों ही माध्यमों पर दोनों नेताओं की भाषण-अदायगी और काया भाषा का पोस्टमार्टम ज़ारी है। एंकरों के साथ-साथ आम लोग भी बहस पर टीका -टिप्पणी करने में पीछे नहीं हैं। 10 सितम्बर के बहस के बाद दोनों ही दावेदार अपने अपने इलाक़ों में चुनाव प्रचार के लिए निकल चुके हैं। लेकिन, जहां ट्रम्प अपने ख़राब प्रदर्शन के बावज़ूद जीत का दावा कर रहे हैं, वहीं वे दूसरी बहस की तिथि देने से भी कतरा रहे हैं। पर कमला हैरिस की टीम दूसरे चरण के लिए तैयार है। आमतौर पर प्रतिद्वंद्वियों के बीच आमने-सामने की बहस के तीन चरण होते आये हैं। वैसे, डेमोक्रेट पार्टी के पूर्व उम्मीदवार राष्ट्रपति जो बाइडन के साथ ट्रम्प की एक बहस हो चुकी है। उक्त बहस में बाइडन का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक था। इसके बाद ही भारतीय मूल की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने उनका स्थान लिया है। ताज़ा बहस को लगभग पौने सात करोड़ लोगों ने देखा है। शुरुआती बहस के तुलना में ताज़ा बहस के दर्शक भी 31 प्रतिशत अधिक रहे हैं।
प्रसंगवश यह जानना भी कम दिलचस्प नहीं है कि हैरिस- ट्रम्प बहस 11 सितम्बर 2001 की त्रासदी की पूर्व संध्या में हुई है। पाठकों को याद होगा, उस दिन न्यूयॉर्क के दो टॉवरों पर हवाई आतंकी हमले हुये थे। इसके बाद ही अमेरिका ने अल क़ायदा को सबक़ सिखाने के लिए 2002 में अफ़ग़ानिस्तान के साथ जंग शुरू कर दी थी। इसलिए इस आतंकी आक्रमण की तारीख़ से एक दिन पहले दोनों की बहस के होने पर भी प्रतिक्रियाएं हो रही हैं क्योंकि अगले दिन 11 सितंबर को मृतकों को श्रद्धांजलियां दी गईं। इस पृष्ठभूमि में अमेरिकी लोकतंत्र के लिए ट्रम्प को अशुभ माना जा रहा है। उनके कुछ वाक्यों का जम कर उपहास हो रहा है। उन्होंने बहस के दौरान कहा था कि ऑहियो राज्य में प्रवासी अपने पालतुओं (कुत्ता, बिल्ली आदि) का भक्षण कर रहे हैं। इसके बाद पत्रकारों ने इस कथन की सच्चाई जानने की कोशिश की। सम्बंधित राज्य का दौरा किया। ट्रम्प का दावा बेबुनियाद निकला है।
मीडिया में उनकी खिंचाई खूब हो रही है। लेकिन, ट्रम्प भी हठी हैं और अपनी झूठ को दोहराये जा रहे हैं। उनका एक वाक्य यह भी है कि वे राष्ट्रपति बनने के बाद ‘योजना की अवधारणा पर काम करेंगे।’ इस वाक्य की भी हँसी उड़ाई जा रही है क्योंकि योजना के क्रियान्वयन में कोई अवधारणा नहीं होती है। काफी सोच-विचार के बाद ही योजना को बनाया जाता है और लागू किया जाता है। ट्रम्प ने अपने भाषण में एक स्थान पर हंगरी के पूर्व तानाशाह प्रधानमंत्री की प्रशंशा कर डाली थी। तानाशाह की तारीफ़ को लेकर भी उनकी तीव्र आलोचना हो रही है। आलोचक कह रहे हैं कि डोनल्ड ट्रम्प स्वयं भी तानाशाह हैं, निरंकुशता को पसंद करते हैं, इसलिए उन्हें ऐसे नेता पसंद आते हैं जिनका लोकतंत्र में विश्वास नहीं है। ट्रम्प ने यह भी धमकी दी थी कि वे ऐसे सरकारी कर्मियों को निकाल देंगे जो उनके प्रति वफ़ादार नहीं है। कोई रियायत नहीं करेंगे। इस वाक्य में ट्रम्प की तानाशाही प्रवृत्ति झलकती है। आप्रवासियों को खदेड़ने के लिए सेना का प्रयोग भी करेंगे। सेना का इस्तेमाल घरेलू मोर्चे पर भी करेंगे। इस कथन से लोग भयभीत भी हुए हैं।
लोगों की प्रतिक्रिया है कि डोनल्ड ट्रम्प की मानसिकता और व्यवहार में बिल्कुल भी बदलाव दिखाई नहीं देता है। लगता है वे 2016 -20 में ही अटके हुए हैं। वहीं हैरिस की काया भाषा यानी बॉडी लैंग्वेज़ में व्यवहारकुशलता दिखाई देती है।
निश्चित ही बहस का पहला चक्र कमला हैरिस के नाम माना जा रहा है। लेकिन, इसका अर्थ यह भी नहीं है कि उनका आगे का कंटक मुक्त -रास्ता है। प्रवासी भारतियों में ट्रम्प के समर्थक कम नहीं हैं। विशेषरूप से गुजराती प्रवासी संगठित हैं। निश्चित ही ये लोग मोदी -भक्त भी हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसी महीने अमेरिका यात्रा पर आएंगे। कांग्रेस नेता राहुल गांधी यात्रा कर के लौट चुके हैं। उनकी यात्रा की धमक सुनाई दे रही है। पर, लोगों का यह भी कहना है कि वे विवादों से बचें और प्रवासी दशा -दिशा पर अपना ध्यान केंद्रित रखें। बेशक़ उन्होंने अपने भाषणों से एजेंडा सेट कर दिया है। मोदी जी के पास इसकी क्या काट रहेगी, यह देखना शेष है। इतना ज़रूर है कि मोदी जी पहली जैसी आक्रामकता और बड़बोलेपन से काम लेंगे, इसकी सम्भावना कम है क्योंकि राहुल गाँधी ने मोदी जी की राहों में ‘प्रेम, आदर और शालीनता’ पर भाषण करके ‘स्पीड ब्रेकर’ ज़रूर लगा दिए हैं।
About Us । Mission Statement । Board of Directors । Editorial Board | Satya Hindi Editorial Standards
Grievance Redressal । Terms of use । Privacy Policy
अपनी राय बतायें