यह लेख लॉ के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर कैलाश जीनगर, कैंपस लॉ सेंटर, दिल्ली विश्वविद्यालय के लेख के जवाब में लिखा गया है, जिसका शीर्षक है- 'सुप्रीम कोर्ट को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि आरक्षण एक मौलिक अधिकार है' जो 'thewire.in' पर प्रकाशित हुआ था। प्रोफ़ेसर जीनगर 'हर सार्वजनिक सेवा के सभी स्तरों पर पिछड़े वर्गों के पर्याप्त प्रतिनिधित्व’ की वकालत करते हैं।
'सभी जाति आधारित आरक्षण को समाप्त किया जाना चाहिए'
- विचार
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- 15 Jul, 2020

प्रोफ़ेसर जीनगर 'हर सार्वजनिक सेवा के सभी स्तरों पर पिछड़े वर्गों के पर्याप्त प्रतिनिधित्व’ की वकालत करते हैं। मेरा मानना है कि अब वह समय आ गया है जब SC/OBC के लोगों को इस राजनैतिक धोखाधड़ी और शब्दों के इस फेर के पार देखना चाहिए, और सभी जाति आधारित आरक्षणों को समाप्त करने की माँग करनी चाहिए।
भारतीय संविधान में कोई प्रावधान नहीं है कि जाति आधारित आरक्षण अनिवार्य है। अनुच्छेद 15 (4), 16 (4), और 16 (4A) में केवल यह कहा गया है कि पिछड़े वर्गों के लिए प्रशासन आरक्षण कर सकता है परन्तु यह कहीं नहीं कहा गया है कि आरक्षण करना अनिवार्य है।
प्रोफ़ेसर जीनगर अनुच्छेद 14 में दिए गए समानता के अधिकार को आधार बनाकर इसे आरक्षण की अनिवार्यता के रूप में प्रस्तुत करना चाहते हैं। लेकिन वास्तविकता क्या है?