मैंने प्रवासी मज़दूरों से संबंधित जनहित याचिका में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बारे में जस्टिस मदन लोकुर, पूर्व न्यायाधीश, सुप्रीम कोर्ट और जस्टिस एपी शाह, पूर्व चीफ़ जस्टिस, दिल्ली और मद्रास उच्च न्यायालय के करण थापर के साथ साक्षात्कार देखे।
'जस्टिस लोकुर और जस्टिस एपी शाह निरर्थक और बेतुकी बात कर रहे हैं'
- विचार
- |
- |
- 14 May, 2020

मैंने कुछ समय पहले इस मुद्दे पर पत्रकार करण थापर से फ़ोन पर बात की थी। वह मेरे विचार से असहमत थे और उनका दिल ग़रीबों और पीड़ितों के लिए ख़ूब धड़क रहा था। मुझे नहीं लगता कि मेरे पास एक पत्थर दिल है लेकिन मुझे लगता है कि जस्टिस लोकुर, जस्टिस शाह और करण थापर निरर्थक बात कर रहे हैं।
इन दोनों न्यायाधीशों के विचारों से पूरे सम्मान के साथ असहमत होते हुए मैं कहना चाहता हूँ कि वे बेतुकी बात कर रहे हैं। इसलिए मैं इस मामले में अपना दृष्टिकोण दे रहा हूँ। सबसे पहले मैं यह बता दूँ कि मैं भी उन लाखों प्रवासियों और मज़दूरों की दुर्दशा से बहुत व्यथित हूँ, जिन्होंने देशव्यापी लॉकडाउन के कारण अपनी आजीविका खो दी है और अपने परिवारों के साथ भुखमरी की कगार पर खड़े हैं।
दूसरा, यह सच है कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत इन लोगों के जीवन के मौलिक अधिकार को ख़तरे में डाल दिया गया है। लेकिन जब जस्टिस लोकुर कहते हैं कि ‘सुप्रीम कोर्ट अपनी संवैधानिक भूमिका को पूरा नहीं कर रहा है’ और ‘उसने प्रवासी मज़दूरों और कामगारों को निराश कर दिया है’, तो मैं यह पूछना चाहूँगा कि सुप्रीम कोर्ट इस स्थिति में क्या कर सकता है?