एक जनवरी 1983, ‘नवभारत टाइम्स’ के मुम्बई संस्करण के समाचार संपादक रामसेवक श्रीवास्तव के घर के फोन की घंटी सुबह-सुबह घनघनाती है। उधर से पूछा गया कि पहले पेज पर यह एक खबर किसने लिखी है, नाम बताइए! फोन राजेंद्र माथुर का था, जिन्होंने दो-ढाई महीने पहले ही दिल्ली में ‘नवभारत टाइम्स’ के प्रधान संपादक का पद सम्भाला था और मुम्बई की अपनी संपादकीय टीम से पहली मुलाकात के लिए पिछली शाम ही मुम्बई पहुंचे थे।
'आज के संपादकों को राजेंद्र माथुर से सीखना चाहिए कि संपादक होना क्या होता है'
- विचार
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- 7 Aug, 2021

राजेंद्र माथुर जी के नए प्रयोगों में बहुत कुछ सफल रहे, तो कुछ नहीं भी रहे। कुछ पर सवाल भी उठे। लेकिन उनका मानना साफ था कि प्रयोगों की रफ्तार कभी रुकनी नहीं चाहिए और उसके लिए हमेशा हौसला बढ़ाया जाना चाहिए।
श्रीवास्तव जी को लगा कि शायद कुछ भारी गड़बड़ हो गयी है। लेकिन उन्हें समझ में नहीं आया कि इसमें भला क्या गड़बड़ हो सकती है? खबर तो इस बारे में थी कि मुम्बई के लोगों ने पिछली रात नए साल का स्वागत कैसे किया।
दफ्तर में कॉपी निकलवा कर देखी गयी और फिर माथुर जी को फोन कर बताया गया कि खबर तो अखबार के सबसे जूनियर रिपोर्टर ने लिखी है। कुल साल भर हुआ है उसे काम करते हुए। वैसे लड़का काम तो ठीक ही करता है। क्या कोई बड़ी गलती हो गयी है? माथुर जी ने कहा, ‘नहीं, कोई गलती नहीं हुई है। खबर अच्छी लिखी गयी है। उस लड़के से आज मुझे मिलवाइए।’
स्वतंत्र स्तम्भकार. 38 साल से पत्रकारिता में. आठ साल तक (2004-12) टीवी टुडे नेटवर्क के चार चैनलों आज तक