सैयद अली शाह गिलानी 1947 के बाद से कश्मीर के अकेले ऐसे नेता रहे थे जिन पर दिल्ली का एजेंट होने का आरोप कभी नहीं लग पाया। वे ताउम्र पाकिस्तानपरस्त के तौर पर ही जाने गए। गिलानी न होते तो कश्मीरी अलगाववादी आंदोलन भी शायद इतना लंबा न चल पाता। उनके न रहने के बाद यह देखना रोचक होगा कि कश्मीर में अलगाववादी राजनीति क्या करवट लेगी?