इतिहास ख़ुद को दोहराता नहीं, सिर्फ़ उसकी प्रतिध्वनि सुनाई देती है। और 44 साल पहले लगाए गए आपातकाल की मौजूदा प्रतिध्वनि वाक़ई भयावह है। भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलनों से पैदा उथल-पुथल और अपनी सरकार की विश्वसनीयता धूल में मिल जाने से बौखलाई इंदिरा गाँधी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उन्हें अपदस्थ करने के फ़ैसले के बाद 25 जून, 1975 को देश में आपातकाल लगा दिया था। इसके तहत सांविधानिक अधिकारों को मुल्तवी कर दिया गया था। सख़्त प्रेस सेंसरशिप के ज़रिए संपादकों को सरकार की मर्ज़ी के आगे नतमस्तक होने पर मजबूर कर दिया गया था। प्रधानमंत्री ने संविधान के 42वें संशोधन के तहत असीमित अधिकार हथिया लिए थे। सरकार की अलोकतांत्रिक नीतियों का विरोध करने वाले हज़ारों लोगों को क़ैदखानों में डाल दिया गया था।

इतिहास ख़ुद को दोहराता नहीं, सिर्फ़ उसकी प्रतिध्वनि सुनाई देती है। और 44 साल पहले लगाए गए आपातकाल की मौजूदा प्रतिध्वनि वाक़ई भयावह है।