प्रधानमंत्री ने देश के मुख्यमंत्रियों से जो संवाद किया है, उससे यही अंदाज़ लग रहा है कि तालाबंदी अभी दो सप्ताह तक और बढ़ सकती है। इस नई तालाबंदी में कहाँ कितनी सख्ती बरती जाए और कहाँ कितनी छूट दी जाए, यह भी सरकारों को अभी से सोचकर रखना चाहिए। मुझे ख़ुशी है कि इस तालाबंदी के मौक़े पर इस्तेमाल होनेवाले अटपटे अंग्रेज़ी शब्दों की जगह मैंने जो हिंदी शब्द प्रचारित किए थे, उन्हें अब कुछ टीवी चैनल और हिंदी अख़बार भी चलाने लगे हैं लेकिन हमारे नेता, जो जनता के सेवक हैं और जनता के वोटों से अपनी कुर्सियों पर विराजमान हैं, वे अब भी जनता की ज़ुबान इस्तेमाल करने में संकोच कर रहे हैं। यदि वे कोरोना से जुड़े सरल शब्दों का इस्तेमाल करेंगे तो करोड़ों लोगों को सहूलियत हो जाएगी।
कोरोनाः जनता की ज़ुबान बोलने में क्यों संकोच कर रहे हैं हमारे नेता?
- विचार
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- 29 Mar, 2025

कोरोना वायरस के मामले तेज़ी से बढ़ते जा रहे हैं। तालाबंदी को आगे बढ़ाने के भी संकेत मिल रहे हैं। लोगों की चिंताएँ बढ़ती ही जा रही हैं। नेताओं की प्रतिक्रियाएँ भी आ रही हैं। लेकिन क्या वे आम लोगों की उन चिंताओं को समझा पा रहे हैं? क्या वे जनता की ज़ुबान बोल रहे हैं?