चीन ने साठ साल पहले का दावा दुहरा कर भारत चीन के बीच चल रही मौजूदा सैन्य तनातनी को नया मोड़ दे दिया है। नवंबर, 1959 में चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री चाओ अन लाई ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) का एकपक्षीय प्रस्ताव किया था जिसमें पूर्व में मैकमोहन रेखा से 20-20 किलोमीटर पीछे खिसकने और पश्चिम यानी लद्दाख में, जो देश जहाँ है उसे मान लेने का प्रस्ताव रखा था जिसे नेहरू ने ठुकरा दिया था और यही वजह है कि 1962 में भारत और चीन के बीच युद्ध छिड़ा।
अब चीन ने बताया पूरे लद्दाख को ही विवादास्पद
- विचार
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- 30 Sep, 2020

चीन के ताज़ा दावे से साफ़ है कि पूर्वी लद्दाख के सीमांत इलाक़ों से सैन्य तनाव ख़त्म करने और सैनिकों को पीछे ले जाने के बारे में चीन ने भारतीय सैन्य कमांडर और राजनयिक स्तर की छह दौर की छह दौर की जो वार्ताएँ की थीं वह महज वक़्त खरीदने के लिये ही थीं। साफ़ है कि चीन एक सुविचारित रणनीति के तहत भारत पर सैन्य दबाव बढ़ा रहा है।
चीन द्वारा फिर से किये गए इस दावे को भारतीय विदेश मंत्रालय ने सिरे से खारिज करते हुए कहा है कि चीन ने 1993 के बाद से भारत के साथ अब तक जितनी संधियाँ और सहमतियाँ की हैं उनमें 1959 की वास्तविक नियंत्रण रेखा का कोई ज़िक्र नहीं है और चीन ने आपसी सहमति से एलएसी तय करने पर ज़ोर दिया था। भारतीय विदेश मंत्रालय ने मंगलवार देर शाम को अपने बयान में चीन के इस दावे को पूरी तरह ग़लत बताया कि पूरा लद्दाख विवादास्पद इलाक़ा है और भारत ने वहाँ सैनिक इरादे से ढाँचागत विकास के ज़रिये तनाव पैदा किया है।