द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति चुना जाना क्या सचमुच एक ऐतिहासिक घटना है? समाजवादी नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया ने कभी कहा था कि वह आज़ाद भारत के राष्ट्रपति के पद पर किसी दलित महिला को देखना चाहेंगे। मुर्मू दलित न सही महिला तो हैं ही और आदिवासी होने के कारण दलित वर्ग के साथ उनकी समानता भी है। तो क्या लोहिया का सपना पूरा हो गया?

आज़ादी के बाद से ही आदिवासियों की भलाई की चिंता की जाती रही है, लेकिन कितना भला किया जा सका है? क्या आज़ादी के बाद पहली आदिवासी महिला के राष्ट्रपति बनने के बाद हालात पहले से बदलेंगे?
मैं फ़िलहाल उन सवालों को नहीं उठाना चाहता, जिन्हें हर नए राष्ट्रपति के चुने जाने के बाद उनके वर्ग को लेकर उठाया जाता है। जैसे कि क्या द्रौपदी मुर्मू के चुने जाने से देश के क़रीब 9 प्रतिशत आदिवासियों पर अत्याचार और शोषण ख़त्म हो जाएगा? क्या आदिवासियों के साथ दलितों और अति पिछड़े लोगों का भी कल्याण होगा? इन सवालों का कुछ जवाब आज़ादी के बाद बने विभिन्न राष्ट्रपतियों के समुदाय के विकास के इतिहास में मौजूद है और कुछ जवाब भविष्य देगा। बहरहाल, भारतीय जनता पार्टी के नेता इस जीत पर गदगद हैं। यह दिखाने की कोशिश की जा रही है कि मुर्मू के चुनाव से आदिवासी, दलित और पिछड़ों के लिए एक नए युग की शुरुआत होगी। क्या इसे भी सच माना जाये?
शैलेश कुमार न्यूज़ नेशन के सीईओ एवं प्रधान संपादक रह चुके हैं। उससे पहले उन्होंने देश के पहले चौबीस घंटा न्यूज़ चैनल - ज़ी न्यूज़ - के लॉन्च में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। टीवी टुडे में एग्ज़िक्युटिव प्रड्यूसर के तौर पर उन्होंने आजतक