भारत एक बार फिर अपने सबसे बड़े और ताक़तवर पड़ोसी चीन के विस्तारवादी इरादों का सामना कर रहा है। दोनों देशों के बीच सीमा पर ज़बर्दस्त तनाव के हालात बने हुए हैं। वैसे चीन के इरादों और उसकी हरकतों को लेकर पहले भी कई बार सीमा पर तनाव के हालात बनते रहे हैं लेकिन इस बार स्थिति गंभीर है। पिछले 45 वर्षों में यह पहला मौक़ा है जब दोनों देशों के बीच ख़ूनी झड़प हुई है, जिसमें दोनों तरफ़ के सैनिक हताहत हुए हैं।
1962 के लिये नेहरू ज़िम्मेदार तो 20 सैनिकों की मौत की ज़िम्मेदारी लें नरेंद्र मोदी!
- विचार
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- 18 Jun, 2020

भारत एक बार फिर चीन के विस्तारवादी इरादों का सामना कर रहा है। दोनों देशों के बीच सीमा पर ज़बर्दस्त तनाव के हालात बने हुए हैं। 1962 के लिये नेहरू ज़िम्मेदार तो 20 सैनिकों की मौत की ज़िम्मेदारी क्या नरेंद्र मोदी की नहीं है?
भारत-चीन के तनाव की जब भी बात हो और 1962 के चीनी हमले का ज़िक्र न हो, ऐसा तो हो ही नहीं सकता। ज़िक्र होना भी चाहिए, क्योंकि भारत और चीन का वह युद्ध हमारे देश की आज़ादी के बाद के इतिहास का एक बेहद दुखद अध्याय है। उस युद्ध में भारत की दारुण हार हुई थी और उसके डेढ़ साल बाद ही 1964 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू चीन से मिले धोखे और युद्ध में मिली हार का सदमा लिए इस संसार से विदा हो गए थे।