गाँधीजी की डेढ़ सौवीं जयंती पर कई देखी-सुनी-पढ़ी बातें याद आयीं। सारी बातें और प्रसंग अत्यंत निकट और आसपास के लोगों से जुड़े हुए हैं, जिनको गाँधीजी का जादुई स्पर्श मिला या जो इस बेजोड़ नेता से जीवन और कर्म में प्रेरित हुए।
गाँधी-150: ‘गोडसे’ ट्विटर ट्रेंड नहीं, देश-देशवासियों के लिए गाँधीजी की आत्मीयता देखिए
- विचार
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- 5 Oct, 2019

गाँधीजी की डेढ़ सौवीं जयंती पर कई देखी-सुनी-पढ़ी बातें याद आयीं। सारी बातें और प्रसंग अत्यंत निकट और आसपास के लोगों से जुड़े हुए हैं, गाँधीजी काफ़ी आत्मीय थे।
मेरे पिता श्री गणेश प्रसाद नायक ने खादी का व्रत 1930 में ले लिया था। तब वह सत्रह साल के थे। दो साल बाद खादी दुगनी महँगी हो गयी। पिता ने गाँधीजी को लिखा कि मेरा जैसा छात्र इस ग़रीबी, महँगाई में खादी का संकल्प कैसे निभाये? उनका पोस्टकार्ड आया, 'डियर गणेश प्रसाद, ह्वेयर देअर इज़ ए विल, देयर इज़ ए वे। कट शार्ट यूअर एक्सपेंसेस, बापू’।
1933 में गाँधीजी संभवत: पहली बार जबलपुर आये थे। एक सभा में पिताजी गाँधीजी के सामने बैठ गए, वह उन्हें एकटक देखे जा रहे थे, तब गाँधीजी ने उनसे कहा, ऐसे मत देखो, ध्यान बँटता है। इसी समय एक सभा हमारे मोहल्ले दीक्षितपुरा के उपरैनगंज वार्ड में स्थित सिमरिया वाली रानी की कोठी में हुई। प्रसंगवश, माखनलाल चतुर्वेदी ने इसी कोठी से 'कर्मवीर’ निकाला था। तब उनका प्रेस भी यहीं था। गाँधीजी की यह सभा महिलाओं की थी। इसके बारे में मुझे मेरी माँ के ताऊजी के पुत्र मामा श्री जीवन नायक ने, जो उस समय ग्यारह वर्ष के थे, बताया था। इसी कोठी के पीछे गली में हमारा ननिहाल 'नायक निवास’ है। मामाजी अपनी माँ को लेकर वहाँ गये थे। भाषण के बाद गाँधीजी झोली फैलाकर एक-एक कतार में गये और चंदा लिया। झोली भरने पर वे जाकर एक जगह उसे उलट आते। घर लौटते हुए मामाजी को उनकी माँ ने बताया कि वह कान के झुमके दे आयी हैं।