गाँधीजी ने वकालत के पेशे से जुड़ी उलझनों और चुनौतियों का कैसे सामना किया जिसके बारे में उन्होंने ख़ुद सुन रखा था कि वह झूठ के गोरखधंधे के बिना नहीं चल सकता?
गाँधीजी की डेढ़ सौवीं जयंती पर कई देखी-सुनी-पढ़ी बातें याद आयीं। सारी बातें और प्रसंग अत्यंत निकट और आसपास के लोगों से जुड़े हुए हैं, गाँधीजी काफ़ी आत्मीय थे।