राजधानी दिल्ली के चर्चित शाहीन बाग़ और प्रसिद्ध सूफ़ी संत निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह के बीच ज़मीनी फ़ासला लगभग दस किलोमीटर का है और इसे बीस मिनट में तय किया जा सकता है। लेकिन इस फ़ासले को दरगाह वाले इलाक़े में स्थित आलमी मरकज़ बंगले वाली मसजिद में हुए तब्लीग़ी जमात के धार्मिक जमावड़े ने हज़ारों किलोमीटर का कर दिया और फिर उस पर स्वच्छता में तीन बार ‘नम्बर वन’ आए इंदौर शहर के एक इलाक़े के कुछ मुसलिम कट्टरपंथियों ने नुकीले काँच, पत्थर और कांटे बिछा दिए।
कोरोना ‘महामारी’ पर तो क़ाबू पा लेंगे, कहीं सांप्रदायिकता की ‘बीमारी’ बेक़ाबू न हो जाए!
- विचार
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- 3 Apr, 2020

कोरोना के ख़िलाफ़ चल रही इस जंग में मरकज़ निज़ामुद्दीन का प्रकरण सामने आने के बाद इस जंग को सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का हथियार बनाने की कोशिश हो रही है।
एक कट्टरपंथी मौलाना की ज़िद ने न सिर्फ़ अपने ही मज़हब की महिलाओं की सौ दिनों की लड़ाई को एक ही झटके में कोरोना से संक्रमित कर अनिश्चितकाल के लिए सांप्रदायिक आइसोलेशन वार्ड में पटक दिया बल्कि देश के बीस करोड़ मुसलिम नागरिकों के सिर भी शर्म से झुकवा दिए।