एक बार फिर साबित हुआ कि किसी भी चुनाव में मतदान का सिलसिला ख़त्म होने के बाद टीवी चैनलों पर दिखाए जाने वाले एग्ज़िट पोल की कवायद पूरी तरह बकवास होती है। पश्चिम बंगाल के मामले में लगभग सभी टीवी चैनलों और सर्वे एजेंसियों के एग्ज़िट पोल औंधे मुँह गिरे हैं। हालाँकि तमिलनाडु, केरल, असम और पुडुचेरी के विधानसभा चुनाव नतीजे एग्ज़िट पोल्स के अनुमानों के मुताबिक़ ही आए हैं लेकिन विभिन्न दलों या गठबंधनों को मिली सीटों की संख्या एग्ज़िट पोल्स के अनुमानों से बिल्कुल अलग है।
पश्चिम बंगाल को लेकर जितने भी एग्ज़िट पोल दिखाए गए थे, उनमें से कुछ ने भारी बहुमत के साथ बीजेपी की सरकार बनने का अनुमान जताया था तो कुछ ने बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस के बीच कांटे का मुक़ाबला बताया था। कुछ सर्वे एजेंसियों और टीवी चैनलों ने अपने एग्ज़िट पोल में तृणमूल कांग्रेस की सरकार बनने का अनुमान भी जताया था लेकिन उनमें से भी किसी ने यह नहीं बताया था कि तृणमूल कांग्रेस को 200 से ज़्यादा सीटें या दो तिहाई बहुमत हासिल हो जाएगा।
सबसे हास्यास्पद एग्ज़िट पोल 'इंडिया टीवी-पीपुल्स पल्स’ का साबित हुआ है। इस एग्ज़िट पोल में दावा किया गया था कि पश्चिम बंगाल में बीजेपी सरकार बनाएगी और उसे 173 से 192 तक सीटें हासिल होंगी। इस एग्ज़िट पोल में तृणमूल कांग्रेस को महज 64 से 98 सीटें मिलने का अनुमान जताया गया था। इसी तरह 'जन की बात’ ने अपने एग्ज़िट पोल में बीजेपी को 173 और तृणमूल कांग्रेस को 113 सीटें और 'रिपब्लिक-सीएनएक्स’ ने बीजेपी को 143 और तृणमूल कांग्रेस को 133 सीटें मिलने के साथ ही बीजेपी की सरकार बनने का अनुमान जताया था।
जिन एग्ज़िट पोल में कांटे का मुक़ाबला बताया गया था उनमें 'आजतक-इंडिया टुडे-एक्सिस माय इंडिया’ ने बीजेपी को 134 से 160 तथा तृणमूल कांग्रेस को 130 से 156 सीटें मिलने का अनुमान जताया था। इसी तरह टीवी9-पोलस्ट्रेट ने बीजेपी को 134 से 160 और तृणमूल कांग्रेस को 130 से 156 सीटें मिलने की संभावना व्यक्त की थी।
दरअसल हमारे देश में एग्ज़िट पोल हमेशा ही तुक्केबाज़ी और टीवी चैनलों के लिए एक कारोबारी इवेंट होता है। ये कभी भी विश्वसनीय साबित नहीं हुए हैं और इन पर संदेह करने की ठोस वजहें मौजूद हैं।
जब से हमारे देश में एग्ज़िट पोल का चलन शुरू हुआ तब से लेकर अब तक एग्ज़िट पोल के सबसे सटीक अनुमान सिर्फ़ 1984 के आम चुनाव में ही रहे। अन्यथा तो लगभग हमेशा ही वास्तविक नतीजे एग्ज़िट पोल के अनुमानों से हटकर ही रहे हैं।
पिछले तीन दशक के दौरान हुए तमाम चुनावों के कुछ चुनिंदा उदाहरण गिनाए जा सकते हैं।
2004 के आम चुनाव में लगभग सभी एग्ज़िट पोल्स के नतीजों में बताया गया था कि अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई में एनडीए फिर सरकार बनाएगा, लेकिन वास्तविक नतीजे इसके बिल्कुल उलट रहे। कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए की सरकार बनी। डॉ. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने। 2009 के आम चुनाव में भी सभी एग्ज़िट पोल्स के नतीजों में यूपीए और लालकृष्ण आडवाणी की अगुवाई वाले एनडीए के बीच काँटे की टक्कर बताते हुए दोनों को ही बहुमत के आँकड़े से बहुत दूर दिखाया गया था। लेकिन असल नतीजों में यूपीए को बहुमत से थोड़ी सी कम यानी 262 सीटें मिलीं और सपा-बसपा के बाहरी समर्थन से उसने सरकार बनाई। एनडीए को महज 159 सीटें ही मिल सकीं।
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इस सिलसिले में हमें 2014 और 2019 के आम चुनावों के वक़्त दिखाए गए एग्ज़िट पोल्स के अनुमानों को भी नहीं भूलना चाहिए। दोनों ही चुनावों में तमाम सर्वे एजेंसियों और टीवी चैनलों ने एग्ज़िट पोल्स में एनडीए के सत्ता में आने का अनुमान तो जताया गया था लेकिन किसी ने भी यह नहीं बताया था कि देश पर सबसे लंबे समय तक शासन करने वाली कांग्रेस अपने इतिहास की सबसे शर्मनाक हार से रूबरू होगी और उसे 100 से भी कम सीटें ही हासिल होंगी। लेकिन दोनों ही चुनावों में जब वास्तविक नतीजे आए तो कांग्रेस को क्रमश: 44 और 52 सीटें ही मिल पाईं।
इन चार आम चुनावों के अलावा पिछले क़रीब एक दशक के दौरान हुए तमाम विधानसभा चुनावों के एग्ज़िट पोल्स भी हक़ीक़त से बहुत दूर रहे हैं।
पश्चिम बंगाल में 2011 के विधानसभा चुनाव में किसी भी एग्ज़िट पोल में वामपंथी मोर्चा के हारने और तृणमूल कांग्रेस के भारी बहुमत से सत्ता में आने का अनुमान नहीं जताया था लेकिन जब वास्तविक चुनाव नतीजे आए तो वामपंथी मोर्चा को ऐतिहासिक हार का सामना करना पड़ा।
इसी तरह 2015 में हुए दिल्ली विधानसभा के चुनाव में सभी एग्ज़िट पोल्स बीजेपी की सरकार बनवा रहे थे, लेकिन वास्तविक नतीजे आए तो 70 सदस्यों की विधानसभा में बीजेपी को महज तीन सीटें ही मिलीं और कांग्रेस का तो खाता भी नहीं खुला। 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव में भी सभी एग्ज़िट पोल्स के अनुमान बुरी तरह जमींदोज हुए थे।
ऐसा नहीं है कि एग्ज़िट पोल्स के नतीजे सिर्फ़ भारत में मुँह की खाते हो, विदेशों में भी ऐसा होता है, जहाँ पर कि वैज्ञानिक तरीक़ों से एग्ज़िट पोल्स किए जाते हैं। दो साल पहले हुए ऑस्ट्रेलिया के चुनाव को ताज़ा मिसाल के तौर पर देखा जा सकता है। ऑस्ट्रेलिया के संघीय चुनाव में तमाम सर्वेक्षणों में विपक्षी लिबरल-नेशनल गठबंधन को बहुमत के क़रीब और सत्ता में आता हुआ दिखाया गया था लेकिन चुनाव नतीजे बिल्कुल उलट रहे।
इस सिलसिले में अमेरिका के मौजूदा राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रंप के चुनाव को भी याद किया जा सकता है, जिसमें सारे ओपनियन और एग्ज़िट पोल्स हिलेरी क्लिंटन की बढ़त दिखा रहे थे लेकिन चुनाव नतीजों में जीत ट्रंप की हुई थी।
हालाँकि दावा तो हमारे यहाँ भी वैज्ञानिक तरीक़े से ही एग्ज़िट पोल्स करने का किया जाता है, लेकिन ऐसा होता नहीं है। हमारे यहाँ चुनाव को लेकर जिस बड़े पैमाने पर सट्टा होता है और टेलीविजन मीडिया का जिस तरह का लालची चरित्र विकसित हो चुका है, उसके चलते एग्ज़िट पोल्स की पूरी कवायद चुनावी सट्टा बाज़ार के नियामकों और टीवी मीडिया इंडस्ट्री के एक संयुक्त क़ारोबारी उपक्रम से ज़्यादा कुछ नहीं है।
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