देश की राजनीति को अक्सर वंशवाद और परिवारवाद से जोड़ा जाता रहा है। ऐसे बहुत से परिवार हैं जिनके घर में कई पीढ़ियों से राजनीतिक सीढ़ियां चढ़ी जा रही हैं और उनका दखल और दबदबा बना हुआ है। एक जमाने तक कांग्रेस को परिवारवाद या वंशवाद के लिए निशाने पर लिया जाता था, लेकिन आज की राजनीति की हकीकत यह है कि शायद ही कोई राजनीतिक दल परिवारवाद की इस बीमारी से अछूता हो जिससे राजनीतिक दलों में ईमानदारी से बरसों बरस काम करने वाले कार्यकर्ताओं और नेताओं को तो मौका नहीं मिल पाता लेकिन राजनीतिक परिवार से जुड़े बच्चे देखते-देखते विधायक, सांसद और मंत्री बनते चले जाते हैं,पार्टी के अध्यक्ष हो जाते हैं।