अभी पिछले दिनों एक सात-सूत्रीय निर्देश द्वारा अंतरधार्मिक विवाह को ग़ैर इसलामी बताते हुए हतोत्साहित करने की अपील कर मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड पुनः विवाद के घेरे में आ गया। इस तरह की यह कोई पहली घटना नहीं है। बोर्ड की तरफ़ से इस तरह के कई विवादास्पद क़दम पहले भी उठाए जाते रहे हैं। यहाँ एक महत्वपूर्ण सवाल उठता है कि जब देश संविधान द्वारा संचालित होता है तो शरिया या किसी भी धार्मिक संहिता के तहत देश के नागरिकों से इस तरह के असंवैधानिक अपील करना कितना वाजिब है और किसी भी धर्म विशेष के ग़ैर सरकारी संगठन को क्या इस तरह के निर्देश जारी करने का संवैधानिक या नैतिक आधार है?