भ्रष्टाचार, काला धन और आतंकवाद मिटाने के दावे के साथ 8 नवंबर, 2016 को एक हजार और पाँच सौ रुपये के नोटों को नरेंद्र मोदी सरकार ने बंद कर दिया था। एक झटके में मोदी सरकार ने 86 फीसदी मूल्य की मुद्रा को अमान्य घोषित कर दिया था। यह अचानक और अनियोजित ढंग से लागू किया गया कदम था। माना जाता है कि इसके लिए वित्त मंत्री स्व. अरुण जेटली और रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया को भी भरोसे में नहीं लिया गया था। जबकि ऐसे आरोप हैं कि कुछ पूंजीपतियों को पहले से इसकी जानकारी थी।
नोट बदलने के लिए भ्रष्टाचार
इसके लागू होते ही पूरे देश में अफरा-तफरी का माहौल हो गया। नोट बदलने के लिए बैंकों के सामने लंबी-लंबी कतारें लग गईं। भ्रष्टाचार को खत्म करने के दावे के साथ लागू की गई नोटबंदी के समय नोट बदलने के लिए भ्रष्टाचार हुआ। बैंकों के कर्मचारियों से लेकर दलालों और कुछ सत्ताधारी दल के नेताओं पर कमीशन लेकर नोट बदलवाने के आरोप लगे।
यह यूरोप में जेबकतरी की समस्या दूर करने के लिए आरोपी को फाँसी देने की तरह की मिसाल है। भय पैदा करने के उद्देश्य से जब जेबकतरों को सरेआम चौराहे पर फाँसी दी जा रही थी, तब यह मंजर देखने के लिए उमड़ी भीड़ में चालीस लोगों की जेब कट गई थी। दरअसल, यह बहुत विडंबनापूर्ण और हास्यास्पद स्थिति थी।
नोट बदलने के लिए कतार में लगे तकरीबन 180 लोगों की मौत हो गई। विपक्षी नेताओं और खासकर राहुल गांधी की आलोचनाओं को खारिज करने के लिए नरेंद्र मोदी ने अपनी 90 साल की बुजुर्ग मां को बैंक के आगे कतार में खड़ा कर दिया।
नोट में नैनो चिप!
भ्रष्टाचार मिटाने के लिए उन दिनों रामदेव जैसे बाबा भेषधारी कॉरपोरेट बड़े नोटों को बंद करने की माँग करते थे। नरेन्द्र मोदी ने दो हजार का नया नोट जारी किया। इसके समर्थन में गोदी मीडिया को लगाया गया। कुछ नामी पत्रकार दो हजार के नोट के बारे में अद्भुत ज्ञान दे रहे थे! बताया गया कि दो हजार के नोट में एक नैनो चिप लगी है। इसके जरिए एक जगह एकत्रित नोटों से सिग्नल सीधे इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को जाएगा। इस प्रकार इसे जमा करने वाला व्यक्ति पकड़ा जाएगा। बावजूद इसके लोगों का गुस्सा थम नहीं रहा था।
तब खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सामने आकर देश से केवल पचास दिन का समय मांगा। उन्होंने पचास दिन में नोटबंदी से उपजी तकलीफ और भ्रष्टाचार की समस्या दूर करने का जुमला थमा दिया।
भारत की महान जनता ने अपने प्रधानमंत्री के इरादों पर एक बार फिर भरोसा करते हुए तमाम तकलीफों को भोगा। लेकिन भ्रष्टाचार और महंगाई को कम करने का जो वादा किया गया था, वह आज कहीं अधिक भयानक रूप में हमारे सामने है।
डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा था कि नोटबंदी से उपजी स्थिति का असर तीन साल बाद भारतीय अर्थव्यवस्था पर स्पष्ट रूप से दिखाई देगा। बीते दिनों इसी तरह से पूरे देश में जीएसटी को लागू किया गया। इन दोनों स्थितियों का विश्लेषण करते हुए डॉ. मनमोहन सिंह का कहना था कि इससे जीडीपी में दो फीसद तक गिरावट हो सकती है।
लॉकडाउन से बिगड़े हालात
कोरोना संकट में लागू किए गए लॉकडाउन ने इन स्थितियों को और भी विकट बना दिया। आज भारत की जीडीपी बांग्लादेश जैसे छोटे देश से भी पिछड़ गई है। बढ़ती बेरोजगारी और महंगाई के कारण ग़रीबी और भुखमरी भी तेजी से बढ़ रही है। 102 देशों के वैश्विक भूख सूचकांक में भारत 94वें स्थान पर है। जबकि भारत से ऊपर बांग्लादेश 75वें, म्यांमार 78वें, पाकिस्तान 88वें, नेपाल 73वें और श्रीलंका 64वें स्थान पर है। कुपोषण भी एक बड़ी समस्या है। आज देश की 14 फीसदी आबादी कुपोषण की शिकार है।
नोटबंदी से भ्रष्टाचार के उन्मूलन का जो दावा किया गया था, उसकी सच्चाई क्या है? दरअसल, भारत में भ्रष्टाचार घटने के स्थान पर बढ़ा है। बल्कि यह अधिक संस्थागत हुआ है।
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा जारी की गई भ्रष्टाचार रैंकिंग में साल 2018 के 78वें स्थान के मुकाबले भारत 2020 में दो स्थान नीचे खिसककर 80वें स्थान पर पहुंच गया है।
बैंकों में वापस आई सारी रकम
नोटबंदी के समय काला धन वापस आने का भी अनुमान लगाया गया था। जबकि सच्चाई यह है कि 99 फीसदी रकम वापस बैंकों में आ गयी है। इसके अतिरिक्त सहकारी सोसायटी और बैंकों में करीब आठ हजार करोड़ रुपया पहले से ही जमा है। साथ ही नेपाल, भूटान और दुबई में भारतीय मुद्रा है। इसका मतलब है कि लगभग सारा पैसा अपनी जगह पर है। तब फिर जिस कालेधन की बात की जा रही थी वह कहां है?
जाली नोट का दावा फेल
मोदी सरकार का एक और दावा था कि भारतीय बाजार में करीब 10 से 12 हजार करोड़ का नकली नोट चलन में है। नोटबदली के समय पूरा नकली रुपया पकड़ा जाएगा। लेकिन सच्चाई है कि केवल 40 करोड़ ही पकड़ा गया। चार साल के भीतर विशेषकर 500 और 100 के जाली नोट फिर से बाजार में आ चुके हैं। इसका मतलब है कि जाली नोट की समस्या नोट बदलने से समाप्त नहीं होगी।
नेपाल के रास्ते पाकिस्तान में छपने वाले नकली नोटों का कारोबार निगरानी तंत्र मुस्तैद किए बिना समाप्त नहीं किया जा सकता। इसके लिए खुफिया एजेंसियों को सतर्क और सीमा सुरक्षा को चाक-चौबंद करना ज़्यादा ज़रूरी है।
कांग्रेस का हमला
कांग्रेस ने नोटबंदी की चौथी सालगिरह को 'विश्वासघात दिवस' के रूप में प्रचारित करके इसका विरोध किया है। राहुल गांधी से लेकर संगठन के निचले स्तर तक कांग्रेस के नेताओं ने 'स्पीकअप इंडिया' मुहिम द्वारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से देश से माफी माँगने की अपील की है। राहुल गांधी का कहना है कि नोटबंदी और जीएसटी से लघु और मध्यम कारोबारियों की कमर टूट गई है।
महंगाई-बेरोजगारी की मार
कांग्रेस का आरोप है कि बड़े उद्योगपतियों को फायदा पहुँचाने के लिए नरेंद्र मोदी ने ये योजनाएं लागू की हैं। विपक्ष का विरोध अपनी जगह है, लेकिन यह बात सच है कि नरेंद्र मोदी के 6 साल के कार्यकाल में आर्थिक समस्या अब राजनीतिक समस्या बनने जा रही है। दरअसल, आर्थिक समस्या को राजनीतिक समस्या बनने में समय लगता है। आज भारतीय जन सामान्य के लिए महंगाई और बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्याएं हैं।
बिहार चुनाव में विरोध
भारतीय राजनीति और लोकतंत्र का इतिहास गवाह है कि विशेषकर खाद्य मुद्रास्फीति ने सरकारों को बेदखल करने में बड़ी भूमिका अदा की है। हाल ही में संपन्न बिहार विधानसभा चुनावों में बेरोजगारी की भयावह स्थिति के साथ खाद्य महंगाई ने भी नीतीश कुमार और बीजेपी के सामने मुश्किलें पैदा की हैं। नीतीश कुमार की कई सभाओं में प्याज और आलू फेंककर विरोध किया गया। स्मरणीय है कि महंगे प्याज ने अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार को भी एक बार रुलाया था!
2014 में न्यूयार्क से लेकर मुंबई तक बहुत से विश्लेषकों ने नरेन्द्र मोदी में भारत का रोनाल्ड रीगल बनने का अवसर देखा था। एक ऐसा परिवर्तनकारी नेता जो लोगों की सोच बदल देगा। लोगों की नजर में सरकार की अहमियत बदल देगा। अब सवाल है कि नोटबंदी के चार साल बाद क्या विश्लेषकों का भरोसा पुख्ता हुआ है अथवा चकनाचूर?
अपनी राय बतायें