भारत में लोकतंत्र है, ये भ्रम बना रहना चाहिये । क्योंकि ये भ्रम अच्छा है । इससे हमें अपने होने का एहसास बना रहता है । और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर गौरव भाव भी । लेकिन ये लोकतंत्र क्या वही है जिससे हम रूबरू रहे हैं या हम जिसको सोचते समझते बड़े हुए हैं जिसमें हमें न तो कहने के पहले कुछ सोचना पड़ता था और न ही सोचने के पहले अपने पर ब्रेक लगाना पड़ता था । अब हम सोचते भी हैं और सोचने के पहले भी सोचते हैं कि क्या ये कहना सही होगा, कहीं ऐसा न हो कि किसी की धार्मिक भावनाएं आहत हो जाये । कहीं कोई मेरे ख़िलाफ़ एफ़आईआर न करा दें और रात के दो बजे पुलिस आकर हमें गिरफ़्तार न कर ले । और फिर अदालतों के चक्कर लगाते लगाते दिन और महीने बीते ।