तो क्या हनुमान जी भगवान राम पर भारी पड़े? मैं यह जानता हूँ कि यह तुलना अनावश्यक है। भारतीय परंपरा में राम और हनुमान को अलग कर नहीं देखा जाता। रामभक्त हनुमान को मर्यादा पुरुषोत्तम राम का ही अंश माना जाता है। राम के बग़ैर हनुमान का कोई अस्तित्व नहीं है। लेकिन देश की राजनीति ऐसी हो गयी है कि वह राम और हनुमान में भी भेद कर देती है और हद तो तब हो जाती है जब हनुमान जी की जाति पूछी जाती है। दिल्ली के चुनाव ने यह साबित कर दिया है कि जो इतिहास से सबक़ नहीं लेते वे इतिहास को दोहराने के लिए अभिशप्त होते हैं। आप ने इतिहास से सबक़ लिया और बीजेपी के तमाम उकसावे के बाद भी उसने बीजेपी की पिच पर खेलने से इनकार कर दिया। बीजेपी वही पुराना राग ‘पाकिस्तान’ गाती रही और जनता ने इसे नकार दिया।

दिल्ली के चुनाव ने यह साबित कर दिया है कि जो इतिहास से सबक़ नहीं लेते वे इतिहास को दोहराने के लिए अभिशप्त होते हैं। क्या आप और बीजेपी में यही फ़र्क है? आप ने पिछले पाँच सालों में दिल्ली में काम किया है। बिजली, पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य पर इनके विरोधी भी मानते हैं कि सरकार ने बुनियादी काम किया है। एमसीडी में मौजूद बीजेपी की छवि बहुत ख़राब है। लंबे समय तक वहाँ होने के बावजूद हालात में गुणात्मक परिवर्तन नहीं आया।
इस बार के चुनाव की सबसे बड़ी ख़ासियत थी अरविंद केजरीवाल का बदला-बदला रूप। यह वह केजरीवाल नहीं थे जिस रूप में वह जाने जाते रहे। 2013-15 के केजरीवाल बेहद झल्लाने वाले, भावुक और कभी भी किसी को भी अपशब्द कहने वाले थे। केजरीवाल इस चुनाव में संभल कर चलने वाले, सोच-विचार कर फ़ैसले लेने वाले, और अनावश्यक टिप्पणियों से बचने वाले के रूप में दिखे। केजरीवाल अगर पहले वाले होते तो अमित शाह के यह कहने पर कि केजरीवाल शाहीन बाग़ क्यों नहीं जाते, फ़ौरन टिप्पणी कर देते और उन्हें उसका चुनावी ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ता जैसा कि पंजाब चुनाव या उसके पहले देखने को मिला था।
पत्रकारिता में एक लंबी पारी और राजनीति में 20-20 खेलने के बाद आशुतोष पिछले दिनों पत्रकारिता में लौट आए हैं। समाचार पत्रों में लिखी उनकी टिप्पणियाँ 'मुखौटे का राजधर्म' नामक संग्रह से प्रकाशित हो चुका है। उनकी अन्य प्रकाशित पुस्तकों में अन्ना आंदोलन पर भी लिखी एक किताब भी है।