दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजों को देखें तो एकबार के लिये ऐसा लगेगा कि कुछ भी तो नहीं बदला है। फिर से वही आम आदमी पार्टी की सरकार, अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री, बीजेपी की करारी हार और राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस एक बार फिर शून्य पर यानी अपना खाता तक नहीं खोल पाई। लेकिन थोड़ा ध्यान से देखेंगे, थोड़ा रुककर देखेंगे तो समझ आता है कि इससे बड़े बदलाव का चुनाव तो कभी हुआ ही नहीं। सब कुछ तो बदल गया। चुनाव का नैरेटिव ही बदल गया। सरकार में रहने वाली पार्टी अपने काम के नाम पर चुनाव जीत गई और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिशें हार गईं, नफ़रत की राजनीति हार गई।